Monday 24 October 2016

मंथन (Manthan )


मंथन  (Manthan )
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आयु के अंतिम पड़ाव पर …………………….Aayu ke atim padaaw pr
एक छोर पर खड़ी ………………………………ek chor pr khadi
एक ज़िन्दगी…………………………………….ek zindgi  
इतिहास बनने को उत्सुक……………………itihaas ban-ne ko utsuk
दुविधा में पड़ी ……………………………………dwida mein padi
मंथन कर रही है ………………………………..manthan kr rahi hai
क्या  दिया है उसने संसार को  …………… kya diya hai usne sansaar ko
उसके ज़िंदा होने का उपहार ?………………uske zinda hoone kaa uphaar ?

तीसरे महायुद्ध की आशंका …………………teesre mahayudh kee anshanka
परमाणु युद्ध की विभीषिका …………………parmanu yudh kee vibhishika
क्षत विक्षित ओज़ोन की चेतावनी…………..ksht vikshit ozon kee chetaavani
श्वेत श्याम की कहानी………………………..shwet shyam kee kahaani
खोखले मूल्यों पर खोखले भाषण ………….khokle mulyon pr khokhle bhaashan
पर्यावरण की ज़ुबानी……………………………paryaavran kee zubhaani
या फिर ऐसा इंसान……………………………..yaa phir aisa insaan
जो विवेक खो चुका हो………………………..jo vivek kho cuhuka ho  
आतंक, उग्र , अलगाववाद के……………... aatank, ugr, algaav-vaad ke  
दलदल में धंसा …………………………………..daldal mein dhasan
कैंसर एड्स और नशे में फंसा………………cancer, AIDs aur nashe mein phansa
इंसानियत का मुखोटा पहने ………………….insaaniyat kaa mukhota pahne
इंसानियत को ही रो रहा हो।…………………insssniyat ko hee ro raha ho.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/त्रिभवन कौल

5 comments:

  1. डॉ किरण मिश्रा
    इतिहास से लेकर वर्तमान तक सर्वाधिकार सुरक्षित नहीं। उम्दा लेखनी।
    October 24 at 11:09pm
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    Manjula Verma Thakur Wah
    वाह lajwaab लाजवाब sir सर
    October 24 at 11:14pm
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    Jai Krishna
    "आयु के अंतिम.........उपहार ?"
    ------------------------------ इस कविता का यह प्रथम अंश मुझे अत्यन्त प्रिय लगा . कवि का आत्म यहॉ जिस बेवाकी से मुखर हुआ है, मेरे विचार से यही वह साहित्यिक ऊँचाई है, जिसकी दुनियॉ पूजा करती है .
    साहित्य में छद्म का कोई स्थान नहीं . कवि का निश्छल हृदय और प्रशान्त वाणी पाठक का मर्म भेद जाती-सी !
    October 24 at 11:30pm
    --------------------- fb/TL

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  2. Sanjay Kumar Giri
    तीसरे महायुद्ध की आशंका
    परमाणु युद्ध की विभीषिका
    क्षत विक्षित ओज़ोन की चेतावनी
    श्वेत श्याम की कहानी
    खोखले मूल्यों पर खोखले भाषण
    पर्यावरण की ज़ुबानी --वाह्ह्हह्ह वाह्ह्ह्ह सुन्दर रचना के माध्यम से एक चिंतन करती हुई कविता का सृजन किया है आपने
    October 24 at 10:17pm
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    Sharda Madra
    अनुपम सृजन आदरणीय ।सटीक सोच।नमन आपको।
    October 24 at 10:20pm
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    कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव प्रज्ञाञ्जलि
    अनुपम
    October 24 at 11:04pm
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    अशोक 'अश्क़'
    वाह उम्दा अनुपम रचना सर
    October 24 at 11:15pm
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    Chanchala Inchulkar Soni
    वाहह्ह्ह् सटीक चिंतन आदरणीय _/\_
    October 24
    --------------------------------via/युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच

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  3. Amit Dahiyabadshah
    Wah Trib Sahib
    October 26 at 11:07am
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    Disha Bafna
    Really nice
    October 26 at 12:07pm
    ==================== via fb/Delhi Poetree

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  4. Kailash Nath Shrivastava
    वर्तमान के मानव समुदाय की दुर्दशा पर बहुत उम्दा चिन्तन एवं चेतावनी .. सुन्दर रचना
    October 26 at 12:05pm
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    प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
    वर्तमान के हालात का जीवित दस्तावेज।
    बेहतरीन भाव ।
    October 26 at 12:18pm
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    वसुधा कनुप्रिया
    अत्यंत भावपूर्ण, सार्थक और सामयिक सृजन, आदरणीय । समाज का सच बयान करती सुन्दर रचना ।
    October 26 at 11:59pm
    ========================via fb/purple pen

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  5. Hardeep Sabharwal
    atti uttam
    October 26 at 11:04am
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    Manjula Verma Thakur
    इंसानो की इस बस्ती में
    अब इन्सान कहाँ बसते हैं
    मरती है रोज़ इंसानियत
    ज़िंदा हैवानीयत रहती है
    October 26 at 12:00pm
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    Jai Krishna
    मानव जीवन की चुभती सी समीक्षा ! पर मानवता की उम्मींद जगाती सी !
    October 26 at 1:41pm
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    Sushma Kochhar
    Ati sunder abhivaykti
    October 26 at 8:31pm
    ========================via fb/Poetry Society of India

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