Sunday 25 January 2015

एक सैनिक की अभिलाषा (In honour of Republic Day of India)

एक सैनिक की अभिलाषा
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जन्मभूमि मेरी
प्रिये मांगती, मेरा बलिदान
रो न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य एक महान .

अर्पण हों गर प्राण मेरे
आंसू बहाना तू नहीं
धैर्य धरना सोच करके
तू अकेली ही नहीं
लाखों चलें हैं इसी पथ पर
करना सबों को एक ही काम
रो न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य एक महान .

तेरे पति को आज
माँ भारती ने पुकारा है
 रगों में बहते खून को
शत्रुओं ने ललकारा है
मस्तिष्क भारत का
कभी झुकने नहीं दूंगा
नीच बैरियों को आगे
बढ़ने नहीं दूंगा
सोच न कर अब प्रिये
कर दे आज पति का दान
रो न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य एक महान .

हों गया शहीद जो में
कर्तव्य न अपना भूलना
नर्स बनके देश की
मौत से तू जूझना
आएंगे हजारों पास तेरे
सहायता पाने को
उत्कंठा होगी उनमे
लाम पर फिरसे जाने को
हर बूँद रक्त की दे
फूंकना तुम उनमे प्राण
रो न प्रिये , यश है इसमें
लक्ष्य एक महान .

देश के दुश्मनो से लड़ूंगा  मैं
दूर कंही लाम पर
लड़ना पड़ेगा मुसीबतों से
तुमको अपने धाम पर
तपती हुई आग में
चमकना सोने की तरह
घनघोर बादलों में
निखरना सूर्य की तरह
एक सैनिक की हों वीर पत्नी
हों सभी को ऐसा भान
रो न प्रिये, यश है इसमें
आदर्श एक महान .

जन्मभूमि मेरी मांगती मेरे बलिदान
रो न प्रिये, यश है इसमें
लक्ष्य एक महारन.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन क़ौल
Picture image curtsy Google.

Sunday 18 January 2015

Nano Poetry-3

Nano Poetry-3
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Dilemma
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If you read my lips
It says go
If you feel my heart
It  says no.
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Ego
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Silence, she does not break
Pretence I do not shed
Love  becomes  casualty
Hearts remain unread.
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Life
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Sand squeezed in hand
Slipping involuntarily
Merging with sand,
Ultimately.
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All rights reserved/Tribhawan Kaul

Thursday 15 January 2015

Some beautiful moments to be cherished

Some beautiful moments to be cherished of 11th January,2015 

the day when I was awarded a plaque of honour for my recitation 

by none other than great ghazalkaar and poet ‘GULZAAR DEHALVI 

SAHIB’. The poetry meet’ Ek Shaam Ghazal Ke Naam’ was held 

under the agies of Aagaman Group of Shri. Pawan Jain Ji. Gracing 

the occasion by their presence were great poet/poetess Dr. Rama 

Singh, S/Shri Malikzada Javed Ji, S P Gaud Ji, Dr. Ashok Madup Ji, 

Dr. Kaushal Farhat Ji and Shyam Sharma Ji. 

रविवार दिनांक 11 जनवरी 2015 ..श्री पवन जैन जी के आगमन परिवार के तत्वाधान में आयोजित काव्य गोष्ठी 'एक शाम ग़ज़ल के नाम' के कुछ अविस्मरणीय एवं यादगारी पल.

हर दिल अज़ीज़ शायर गुलज़ार देहलवी साहब का  स्वयं मुझको काव्यपाठ के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान  करना एवं  वरिष्ठ कवि , लेखक एवं पत्रकार श्री बी एल गौड़वरिष्ठ कवयित्री एवं लेखिका डा रमा सिंहग़ज़लकार/कवि   श्री मलिकजादा जावेद , डा अशोक मधुप , श्री श्याम शर्मा , डा कौशल 'फ़रहत' की गरिमामयी उपस्थति मेरे लिए एक आनंददायक और सुखद अनुभूति रही. उन्ही क्षणों के कुछ चित्र प्रस्तुत हैं.










Tuesday 6 January 2015

Nano Poetry-2




Nano Poetry-2
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Selfless
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Reduced to a wax dot
Still a candle stands tall
Giving itself away
In a selfless way.
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Freedom
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Flock of birds migrating
Crossing boundaries after boundaries
Territories after territories,
unhindered
But marked by humans,
For the humans
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HIS Grace
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I would have lost my way
In labyrinth of crossroads
Thank God and my fate
The path I tread
Is simple and straight.
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All rights reserved/Tribhawan Kaul

Monday 5 January 2015

तुमको क्यों आग लगी.

तुमको क्यों आग लगी.
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वह करती है मुझसे प्यार, तुमको क्यों आग लगी
है उसको भी मेरी दरकार, तुमको क्यों आग लगी.

अँधेरा डरे जिससे , वह चाँद आज  मेरे घर आया है
मेरे सूने जीवन में आई बहार, तुमको क्यों आग लगी.

जैसे  सोनिया राजीव की और अमिताब की बनी जया
वह बसाये मेरा घर  संसार, तुमको क्यों आग लगी.

उर्वशी, मेनका, रम्भा,सब  भरे उसके घर पानी
कैफ,करीना,सब बेकार, तुमको क्यों आग लगी.

गुलाबी ठण्ड में उसका बनाया जाम है हाथों में
बोनस में एक के दिखें चार, तुमको क्यों आग लगी.

हुस्न और इश्क़ के मिलन का फलसफा समझ ले
दिन में मनते है सारे त्यौहार, तुमको क्यों आग लगी

त्रिभवन मोहोब्बत गर सच्ची तो जन्म जन्मों का रिश्ता है
गर है वह गठबंधन को तैयार, तुमको क्यों आग लगी
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन कौल