Monday 11 April 2016

-'बस एक निर्झरणी भावनाओं की’



मैं साहित्यकार होने का दावा नहीं करता पर प्रत्येक  लेखक /कवि का अपनी बात रखने के एक ढंग होता है कविता किसी भी प्रकार की क्यूँ न हो, किसी भी विचारधारा को प्रकट क्यूँ न करती हो, असत्य नहीं होती. हाँ उस सत्य को दर्शाने के लिए कल्पना का सहारा एक आवश्यक साधन बन जाता है. मेरी   अधिकतर  कविताओं में समकालीन एवं तत्कालीन घटनाओं का समावेश है जो  कंही न कंही यथार्त से जुडी हैं. मेरी  कवितायेँ भिन्न काव्य संकलनों जैसे की 'लम्हे'(२०१३), 'सफीना'(२०१४) काव्यशाला (२०१५), सहोदरी सोपान-2(२०१५)  और स्पंदन (२०१५) ,उत्कर्ष काव्य संग्रह (२०१५) कस्तूरी कंचन (२०१६ ) और और मासिक पत्रिकाओं कादम्बनी, कॉशुर समाचार के अतिरिक्त मेरी अपने काव्य संग्रहों 'सबरंग(२०१०)' और 'मन की तरंग (२०१२)' में प्रकाशित हो चुकी हैं. 'बस एक निर्झरणी भावनाओं की ' काव्य संग्रह के रूप में मेरी एक अहिन्दी भाषी के रूप में हिंदी लेखन में अपना स्थान तलाशने की तीसरी कोशिश है। इस काव्य संग्रह का प्रकाशन हिंदुस्तानी भाषा अकादमी द्वारा हो रहा है जो की हिंदी भाषा ही नहीं अपितु भारत देश की प्रत्येक भाषा के उत्थान, विकास, प्रचार और प्रसार के लिए कार्यरत है।

अखिल भारतीय भाषा हो हिंदीहो इसका ऐसा स्वरूप
जनमानस के मन मन बसे, हर भाषा के संग  अनुरूप
सहज सरल समुधुर भाषा यह, हिन्द की सिरमौर बने
स्वीकार्य हो सकल जगत में, राष्ट्र भाषा का हो ऐसा रूप
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