Friday 31 March 2017

राजस्थान प्रान्तीय कवि सम्मेलन,जयपुर 25-03-2017






25 March 2017
संजय कुमार गिरि ,जयपुर,
एम.आई रोड स्थित राजस्थान चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री केभैरोसिंह शेखावत हाल में युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच,दिल्ली के तत्वावधान में राजस्थान प्रान्तीय कवि सम्मेलन, साझा संकलन उत्कर्ष काव्य सग्रह(द्वितीय) का लोकार्पण एवं साहित्यकार सम्मान समारोह आयोजित हुआ जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार त्रिभवन कौल ने की | युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय के सानिध्य में संम्पन्न इस आयोजन में मुख्य अतिथि डा.बजरंग सोनी (वरिष्ठ स्त्रीरोग चिकित्सक एवं साहित्यकार), प्रो.शरद नारायण खरे (वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्रभारी प्राचार्य /राजकीय पी.जी.कॉलेज .मंडला/मध्य प्रदेश ) वीणा चौहान(अध्यक्ष/राजस्थानलेखिकासाहित्यसंस्थान),युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच की राजस्थान प्रभारी प्रमिला आर्य (कोटा ), शकुंतला सरूपरिया,वरिष्ठ साहित्यकार,डा.अनंत भटनागर,वरिष्ठ शिक्षाविद एवं समाजसेवी, जितेन्द्र शर्मा पम्मी ,साहित्यकार/ कोटा, ओम नागर ,ज्ञानपीठ से पुरस्कृत प्रखर युवा साहित्यकार (कोटा) आदि सम्मिलित सभी विशिष्ट अतिथियों का शाल,पुष्प माल और प्रतीक चिन्ह देकर युवाउत्कर्ष साहित्यिक मंच की ओर से सम्मान किया गया | प्रमिला आर्य (प्रभारी राजस्थान )एवं शिवानी शर्मा ने अतिथियों के सम्मान में स्वागत भाषण पढ़ा| मंजु वशिष्ठ की सुंदर माँ शारदे के वंदना के साथ प्रारंभ हुए इस समारोह में उत्कर्ष काव्य संग्रह (2) के मुख्यसंपादक के अतिरिक्त संपादक-मंडल के सदस्य सर्वश्री त्रिभवन कौल सुरेश पाल वर्मा जसाला,ओम प्रकाश शुक्ल,संजय कुमार गिरि, डा.सविता सौरभ एवं शिवानी शर्मा की गरिमामयी उपस्थिति में 55 सशक्त रचनाकारों के साझा संकलन ‘’उत्कर्ष काव्य –संग्रह(द्वितीय)’’ का सम्मानीय अतिथियों द्वारा लोकार्पण किया गया |
इस अवसर पर मंच के महामंत्री ने मंच के विषय में अपने विचार रखे तत्पश्चात मुख्य संपादक रामकिशोर उपाध्याय ने इस संकलन की विशेषताओं पर प्रकाश डाला और प्रो.शरद नारायण खरे में लोकार्पित पुस्तक के विषय में अपना लेख पढ़ा और सुंदर आवरण सज्जा एवं उत्कृष्ट रचनाओं के लिए सम्पादक मंडल सहित सभी सम्मिलित रचनाकारों को बधाई दी|
इस अवसर पर हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट लेखन के लिए प्रमिला आर्य को साहित्य भूषण, प्रो.शरद नारायण खरे, लक्ष्मणप्रसाद रामानुज लड़ीवाला,ओम नागर एवं जितेन्द्र शर्मापम्मी को साहित्यरत्न सम्मान एवं साहित्य गौरव सम्मान शकुंतला तंवर, वीणा सागर, भाग्यम शर्मा, किशोर पारीक अमित टंडन, शांतनु बरार,सुरेश गोस्वामीसुरेश को दिया गया | साथ-साथ वरुण चतुर्वेदी, शोभा चंदर पारीक,प्रज्ञा श्रीवास्तव एवं विनीता सुराना को उनकी साहित्य सेवाओं के लिए सारस्वत सम्मान किया गया |सभी आमंत्रित अतिथियों ने इस सुंदर आयोजन की भूरि –भूरि प्रशंसा की |

कवियों द्वारा पढ़ी पंक्तियाँ ---प्रज्ञा श्रीवास्तव ने बहुत शानदार पढ़ा ---
बेटी हूँ तो क्या मुझको अधिकार नहीं है जीने का
बेटे बेटी का भेद अभी भी बहुत अधिक है

शोभा चंदर पारिक ने पढ़ा --
शोभा को तेरी शान बढाने का हुनर दे
रोते हुए इंसा को हसाने का हुनर दे

शंकुंतला तंवर ने पढ़ा --
सारा उपवन पास तुम्हारे
मुझे मिली इक टहनी है

कवि सुरेश गोस्वामी ने पढ़ा --
अब सभी भाई बड़े होने लगे
इसलिए शायद घड़े होने

शेखर स्वप्न ने पढ़ा ---
मेरे दयार से मेरा मयार ना देखिये
बड़ा किरदार रखता हूँ अदना से कद में
रंगमंच के प्रसिद्द कलाकार एवं कवि विजय दानिश ने भी बखूबी अपना काव्य पाठ किया --
कौन समझाए अब प्रीत की रीत को
जो पुजारी थे खुदा हो गए

उदय पुर से आई कवियत्री ज्योत्स्ना सक्स्सेना न पढ़ा ---
पुतले बन खड़े हैं पूरा निभाएं खुद को
परदे गिरा देना किरदार है तुम्हारे

जयपुर के कवि मुकेश शर्मा ने पढ़ा
हाँ मैं भी करता था कभी कविता
पर अब कहाँ लिख पाता हूँ कुछ भी

कवियत्री अंजली शर्मा ने पढ़ा --
मेरे कल की सुर्खियाँ पढूं या देखूं तेरी तरोताज़ा अंगडाईयों को
कवियत्री सपना शर्मा ने पढ़ा ----
मेरे शहर में सज़दा करके लौट जाने वालों के नाम भी अब याद नहीं

जयपुर की कवियत्री अर्चना शर्मा ने पढ़ा ---
इक दिन अचानक प्यारा सा कुछ लिखते हैं

चन्द्र प्रकाश पारिक ने शानदार मुक्तक पढ़ा --
तुमको देखा तो होश खो बैठा
तू ही बतला मेरी खता क्या है

कवियत्री वीणा शर्मा सागर ने भी बहुत खूब पढ़ा --
आदमी को रहा ढूंढता आदमी
आदमी में रहा ही कहाँ आदमी

नवांकुर कवि श्याम वशिष्ठ ने भी बहुत शानदार पंक्तियाँ पढ़ी ---
जिंदगी बोझ से दबी महसूस होती है
आंखो में हर पल नमी महसूस होती है
बैठे हैं यूँ तो भरे पूरे परिवार में
फिर भी आपकी कमी महसूस होती है।।

नवांकुर कवियत्री मीनाक्षी माथुर ने पढ़ा --
औरत हूँ कोमल सी न समझो कमजोर मुझे
उलझी हूँ थोड़ी सी न परखो मुझे

उदय पुर से आई कवियत्री एवं साहित्यकार शकुन्तलासरुप्रिया
ने भी बहुत सुन्दर ग़ज़ल कुछ यूँ पढ़ी --
अक्सर क्यों खो जाती बेटियाँ
बेघर क्यूँ हो जाती बेटियाँ
दुनिया में आते ही गम का
दस्तर क्यूँ हो जाती बेटियाँ

साहित्यकार त्रिभुवन कौल ने पढ़ा --
रिश्ते सारे सिमट गए तकनीकी औजारों में
चर्चा अब होती नहीं गलियों में बाजारों में

दिल्ली से आये साहित्यकार एवं कवि श्वेताभ पाठक ने जब अपना सुन्दर काव्य पथ किया तो सभी श्रोता मंत्र्मुघ्ध 

हो गए --अरे मन , दिन दिन बीतत जात ।
काल कुठार लिए कर डोलत , देखत पल पल घात ।
श्वेत प्रभात काज सब करि ले , अन्यथा रात ठगात ।

कवि किशोर पारिक ने पढ़ा --
यारो मेरा मन उदास है
कैसे मैं झेलू होली

कवियत्री शिवानी शर्मा ने बहुत शानदार मुक्तक कुछ यूँ पढ़ा --
मेरी दीवानगी हद से ज्यादा उनको खलती है
नफरतें हिन् नफरतें जिनके दिल में पलती है
मिटा सकते नहीं हस्ती भ्रम जितना भी फैला लो
भुला देती हूँ मैं हंसकर जो भी उनकी गलती है

मुख्य अतिथि डॉ बजरंग सोनी ने अपने वक्तव्य के दौरान एक रचना कुछ यूँ पढ़ी --
एक रंग वजूद तेरी पहचान नहीं है
घर की छत कहीं से भी असमान नहीं है

पत्रकार एवं कवि अमित टंडन ने पढ़ा --
मश्वरें लाख देते हैं नुक्ता'ची कई मुझको
ये वो ही हैं जो उम्दा शे'र पर दाद नहीं देते

कवि और साहित्यकार ओम प्रकाश शुक्ल ने भी एक मार्मिक रचना कुछ यूँ पढ़ी
पुत्र को बड़ा होते निहारता हूँ
स्वयं का बचपन उसमे
और आप का अक्स
स्वयं मे पाता हूँ
और अपने भाग्य पर
धन्य हो जाता हूँ

हिंदी के प्रख्यात साहित्कार एवं कवि ने रामकिशोर उपाध्याय ने भी इस अवसर एक सुन्दर मुक्तक पढ़ा
भगवा मेरे अन्दर है पर हरा पहनकर आया हूँ
शौर्य शांति का ध्वज तिरंगा लेकर इतराया हूँ
आओ मिलकर देश बनाये,छोड़ों जंग की बातों को
संग जिए और संग मरे हम,यह संदेशा लाया हूँ

कवि एवं साहित्यकार सुरेश पाल वर्मा ने भी एक शानदार रचना कुछ यूँ पढ़ी ---
मैं महाशिला का कण हूँ,
अभिभूत हूँ मन से,
अस्तित्व है मेरा तब से,
धरा है धरा ने जन्म जबसे,
प्रलय की विभीषिकाओं में भी,
मै जिंदा हूँ निरन्तर,
हूँ मैं महाशिला का कण अभ्यंतर,,,

बनारस से आई राष्ट्रीय कवियत्री एवं गीतकार डॉ सविता सौरभ ने पढ़ा
जबसे फागुन का यह मौसम आया है
लगता जैसे हर कोई बौराया है
बिना पिए ही मदहोशी का आलम है
परचम केसरिया जबसे लहराया है।
रिष्ठ साहित्यकार एवं कवि प्रो.शरद नारायण खरे ने पढ़ा
राह पथरीली बहुत थी,फिर भी हम चलते रहे ,
मन में मंज़िल के लिए ,अरमां सदा पलते रहे !
बन न पाए भास्कर,तो भी न हम मायूस हैं,
दीप बनकर रोशनी के हित में तो जलते रहे !!

कवियत्री "मंजु वशिष्ठ राज"ने बहुत शानदार गीतिका पढ़ी
सुनाओ फिर मेरे प्रीतम, पुरानी प्यार की बातें।
पुरानी प्यार की बातें, वही मनुहार की बातें।।

दिल्ली से आये कवि एवं पत्रकार संजय कुमार गिरि ने अपनी एक पढ़ा
नहीं सहूंगा अत्याचार हर जुर्म को मैं मिटाऊंगा
भारत माँ चरणों में तेरे दुश्मन का शीश झुकाउंगा
जिन्दगी फिर से मिली तो भगत सिंह बन जाऊँगा
हँसते हँसते देश की खातिर फांसी में चढ़ जाऊँगा


प्रातः दस बजे से पांच बजे तक चले कार्यक्रम में राजस्थान,उत्तर प्रदेश,हरियाणा,दिल्ली एवं महाराष्ट्र के विभिन्न अंचलों से पधारे अनेक कवियों और कवयित्रियों ने अपना –अपना सुंदर काव्य-पाठ किया |सम्मिलित कई रचनाकारों ने अपना पहला काव्य पाठ इस मंच से किया और सभी नवोदित रचनाकारों को ‘उत्कर्ष काव्य-संग्रह(प्रथम) की एक प्रति भेंट की गई | कायर्क्रम का शानदार मंच सञ्चालन शिवानी शर्मा एवं श्वेताभ पाठक ने बहुत ही लाजबाब अंदाज़ में किया !अंत में शिवानी शर्मा को ‘श्रेष्ठ साहित्यिक समन्वयक सम्मान देकर उनकी इस आयोजन में भूमिका कोसराहा गया | समारोह के अध्यक्ष त्रिभवन कौल ने सभी अतिथियों,आयोजन सहयोगियों एवं उपस्थित साहित्यकारों के प्रति आभार व्यक्त किया | ===========================================================









Wednesday 29 March 2017

वर्ण पिरामिड (41-42)

वर्ण  पिरामिड (41-42)
(शब्द शीर्षक = सौ / शत / शतक / सैंकड़ा आदि )
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हो
टॉस 
प्रयास
सौ कयास
हार आभास
शतकीय आस
जन जन उल्लास
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है
देश
गर्वित
शहादत
जोशे जवानी
काल का वंदन
शत शत नमन
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल

Monday 27 March 2017

डर

This poem of mine has now found a place in the May 2017 issue of True Media magazine.
डर
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रात के अँधेरे से मुझे डर नहीं लगता 
उजाले की भीड़ में खुद को तन्हा पाता हूँ 
मदद की गुहार लगा रहा वह शख़्स भी तन्हा
इंसां को मौत से मांगते पनाह देखता हूँ। 

खुद को ख़ुदा समझ बैठा, इंसान वह भी
खुदी से खुद को कर जुदा बैठा,इंसान वह भी
फिर क्यों सोचे कोई कि " मैं तन्हा क्यों हूँ ?"
"मैं भी तो इंसान हूँ पर जुदा  क्यों हूँ ?".

रिश्ते सारे सिमिट गए तकनीकी औज़ारों में
बात अब होती नहीं गलियों में, बाज़ारों में
हरे भरे जंगल  पतझड़ की ज़द में आ गए
प्यार रह गया अब यादों की गलियारों में।

करिश्मा कर ! राख से उठ हम उड़ने लगें
प्यार की भाषा फिर से हम समझने लगें
आधुनिकता  ने हमको हमसे दूर कर दिया
काश !एक बार वह बचपन फिर से आने लगे।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल

Saturday 18 March 2017

De novo


De novo
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Too far yet visible
amber red sphere
getting submerged
etching, memories of the day
time lost and time gained.

Blue vast canvas
magician’s call
out of hat
rising fireball
a fresh start.

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All rights reserved/Tribhawan Kaul



Tuesday 14 March 2017

On the eve of Holi festival

Dear friends
On the eve of Holi festival /12th March,2017 it was my great pleasure to meet versatile poetesses, poets  & writers (english) in an informal gathering in connection with the launch of ‘Flight from Terrace’ authored by the winner of Reuel Prize for Literature Dr.Santosh Bakaya. This book is a unique collection of 58 inspiring and mesmerising essays on myriad shades of life.
The presence of literarian, who enthralled the gathering with their delightful recitations, included Lt.Col.(Rtd) Shyam Sunder Sharma (Driftwood Ashore), Yaseen Anwar, Monica Oswal, Ipsita Ganguli, Dr. Boghal, Satbir Chadda, Bushra Alvi Razzack , Aabha Vtsta and many others.
It was definitely a moment of pride to listen to prolific literarian present in the gatherings. Thanks Santosh ji & Satbir Ji for making my evening memorable. Thanks Madhumita Bhattacharjee for lovely pictures.
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Saturday 11 March 2017

फाग






होली के इस शुभ अवसर पर एक रचना बिना बंधन :) :) :) :) :) बिना बंधन के प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
फाग
रचनाओं की बौछार है सगरे पटल सराबोर
होली के रंग में कविगण, रंगें प्रेम की डोर 
रंगें प्रेम की डोर कविजन ऐसा करें धमाल
हर्षाती मनभाती कविता, करती मालामाल
करती मालामाल , सुधीजन गायें ऐसे राग
भर मारें पिचकारी, खेलें रचनाओं से फाग
खेलें रचनाओं से फाग, रंग निखर आयो
कविता सरिता से राधा कृष्ण प्रेम जतायो
राधा कृष्ण प्रेम जतायो कवियन की पैनी धार
हर पटल पर होत अबौ रचनाओं की बौछार।।
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन कौल

Wednesday 8 March 2017

--"प्रेस क्लब आॅफ इण्डिया " में बही फाल्गुनी काव्य रसधार ---





--"प्रेस क्लब आॅफ इण्डिया " में बही फाल्गुनी काव्य रसधार ---
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05/03/2017 नई दिल्ली ।
पर्पल पेन सृजनात्मक समूह द्वारा होली के उपलक्ष्य में फाल्गुनी काव्यगोष्ठी का आयोजन रविवार 5 मार्च को प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया में किया गया ।कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वप्रसिद्ध गज़लकार श्री राजेंद्र नाथ रहबर जी ने की ।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में ख्याति प्राप्त शायर सर्वत जमाल जी पधारे ।इस पावन अवसर पर पर्पल पेन के कवियों सहित मुख्य रूप से आमंत्रित किए गए कवि /शायर कमर बदरपुरी , अरविंद असर ,फैज गाजीपुरी, राजीव रियाज़ ,हबीब सैफी जी उपस्थिति रहें ।
कार्यक्रम के आरंभ में राजेंद्र नाथ रहबर, सर्वत जमाल जी ने पर्पल पेन की संस्थापिका वसुधा कनुप्रिया जी को स्मृति चिह्न व पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया ।राजेंद्र नाथ रहबर ,सर्वत जमाल जी को दिलदार देहलवी व त्रिभुवन कौल जी ने पुष्प गुच्छ दें व शाल पहनाकर सम्मानित किया ।
कार्यक्रम का शुभारंभ उभरती हुई युवा कवियित्री मनीषा चौहान जी ने फाल्गुनी गीत - "होली के रंग में रंग श्याम तुम खेलो मेरे संग" से किया तथा वाहवाही व तालियाँ बटोरी ।उसके बाद बरिष्ठ कवियित्री इन्दिरा शर्मा जी ने कुछ यूँ कहा - चहकी होली मदमस्त फिर रही गली-गली । दिलदार देहलवी जी ने शेर पढ़ा- दुःख में काम आते नही है दोस्त, दुश्मनों के भी पते रखना ।दिलदार देहलवी जी के एक शेर को सुनकर अध्यक्ष महोदय श्री राजेंद्र नाथ "रहबर " जी ने एक शेर यूँ पढ़ा- तेरी रफ्तार पर उमरे-गुरेजा-शक गुजरता है,
लिए जाती है तू मुझको कहीं आहिस्ता -आहिस्ता ।महफिल वाह वाह और तालियों की गड़गड़ाहट से झूम उठी ।
रजनी रामदेव जी ने अपने भाव कुछ यूँ व्यक्त किए- कभी फूल सँग होली,कभी लट्ठ की ठिठोली ।साथ ग्वाल- वाल टोली होली मन भाई रे ।
अरविंद कर्ण जी ने राजनीति पर व्यंग्य करते हुए यूँ पढ़ा - देखो अपने भी अच्छे दिन आ गए, इस होली हम रंगों में नहलायें जायेंगे ।
राज भदौरिया जी ने तरन्नुम में एक गीत पढकर सभी का मन मोह लिया ।
त्रिभुवन कौल जी ने एक शेर यूँ पढ़ा - 

रात भर सोता रहा अल्फाज़ की चादर लपेटे, 
सुबह उठा तो एक नज्म़ का दीदार हो गया ।

इसी कड़ी में ख्याति प्राप्त युवा कवि श्वेताभ पाठक जी ने जब - "श्याम रंग से श्वेत हुआ मन जाता, लाख छुटाऊँ छूट नहीं अब पाता " गीत अपने गायन के लाजबाब अंदाज में पढ़ा तो पूरी महफिल झूम उठी ।
नंदा नूर जी ने यूँ पढ़ा - किसी -किसी को ये खुदा की देन होती है, नहीं है सबके मुकद्दर में शायरी करना ।
वसुधा कनुप्रिया जी ने अपने भावों को यूँ व्यक्त किया- खुद तो हो बेशर्म सीधे दिल में आकर बस गए, और मुझसे रोज कहते हो कि शरमाया करो ।
हबीब सैफी जी ने कुछ यूँ पढ़ा - पसीना जिस्म से बहना भी अच्छा है, किसी मजदूर को शूगर की बीमारी नहीं होती ।
राजीव रियाज़ जी ने कुछ यूँ पढ़ा - जो अश्कों की तुम्हारें ये लड़ी है, हमारा रास्ता रोके खड़ी है ।फैज़ गाजीपुरी जी ने यूँ पढ़ा - तुम हो तो बुलंदी कदम चूमेगी , किस तरह मैं उडूँगा एक पर के साथ ।अरविंद असर जी ने एक शेर यूँ पढ़ा - नगर के सारे निवासी घरों में दुबके है, कि आज अपने महल से निकल रहा राजा ।कमर बदरपुरी जी ने एक शेर यूँ पढ़ा - हर इक मोड़ पर उसका खयाल क्यूँ आया है, जबाब जिसका नहीं वो सवाल क्यूँ आया है ।
मुख्य अतिथि सर्वत जमाल जी ने काव्यपाठ करने वाले युवा रचनाकारों मनीषा चौहान, श्वेताभ पाठक, विवेक शर्मा ' आस्तिक ', अभिषेक झा आदि की रचनाओं को खूब सराहा व उन्हे साहित्य का भविष्य बताकर संबल प्रदान किया ।और अपने शेर यूँ प्रस्तुत किए - आप खुशहालियाँ बयान करें, मुल्क में खुदकुशी किसान करें ।
इस तरफ आदमी उधर कुत्ता, बोलिए किसे सावधान करें ।
इसी के साथ काव्यगोष्ठी में पधारे डाॅ गुरविंदर बांगा जी ,सुदेश कुमार मेहर जी, चन्द्रकांता सिवाल जी ,निशि शर्मा " जिज्ञासु जी , अभिषेक झा जी , विवेक शर्मा ' आस्तिक ' ने भी फाल्गुनी रंग में रंगी कवितायें पढ़कर सभी को आनन्दित कर दिया । कार्यक्रम का संचालन सुश्री निशि शर्मा 'जिज्ञासु ' जी ने बहुत ही सुंदर तरीके से किया।अंत में पर्पल पेन की संस्थापिका व संचालिका सुश्री वसुधा कनुप्रिया जी ने राजेंद्र नाथ रहबर जी, सर्वत जमाल जी एवं काव्यगोष्ठी में आए हुए सभी कविगणों का हृदय तल से आभार व्यक्त किया ।कार्यक्रम के उपरांत वसुधा कनुप्रिया जी ने होली का माहौल बनाकर सभी के रंग का टीका लगाया ।
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______ प्रस्तुति - @विवेक शर्मा " आस्तिक "

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अंतराष्ट्रीय नारी दिवस के सम्मान में एक चतुष्पदी (Quatrain)-34





अंतराष्ट्रीय नारी दिवस के सम्मान में एक चतुष्पदी (Quatrain)-34
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नैनों में का सागर छलक पाता नहीं 

पलकों के तटबंद तलक आता नहीं 

मजबूरी रोकती नहीं मुझको बहाने से 

अहमियत रिश्तों की ,झलक पाता नहीं। 

Naino mein kaa saagar chalak paataa nahi

Palkon ke tatbnd talak aataa nahi 

Majboori rokti nahi mujhko bahaane se 

Ahmiyat rishton kee, jhalak paata nahi.   
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल/08-03-2017
Picture : curtsy Google.com

Monday 6 March 2017

एक अवलोकन :- ज़िंदा है मन्टो ( लधु कथा -संग्रह )/ केदारनाथ 'शब्द मसीहा

एक अवलोकन :-
ज़िंदा है मन्टो ( लधु कथा -संग्रह ) / केदारनाथ 'शब्द मसीहा '
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चाय पीने वालों को अगर काफी मिल जाए तो काफी का हल्का तीखापन एक नए स्वाद से परिचित करा देता है। दिमाग और शरीर को भी एक  नयी ताज़गी और स्फूर्ति का अनुभव कराता है। यही हाल शब्द मसीहा उर्फ़ केदार नाथ द्वारा रचित  लघु कथा संग्रह ' ज़िंदा है मंटो ' अपने पाठकों के साथ कर सकता है यदि पाठक लघु कथाओं के इस दस्तावेज़ को अत्यंत ही बारीकी से पठन करें तो । छोटी छोटी कथानकों में सिमिटी  विषयवस्तु की गहराई, इंसानियत को उकेरती संवेदनाएं ,समाज में उपजी कड़वाहट, उपेक्षा , वेदना ,संघर्ष की प्रस्तुति वास्तव में सआदत हसन
मंटो की याद दिलाती है और पुस्तक के आवरण और शीर्षक को सार्थक करती हैं।

हर एक कथा मूल रूप से एक विचार की गहन प्रस्तुति है। किसी भी कथा को लीजिये, हर कथा में एक विचार को लेखक ने संकेतात्मकता से और सहजता से कलमबंद किया है।  अदा , एडिटर , ज़िंदा ताजमहल , देवदासी , विक्षप्तता की झलक , अर्थ , गौ रक्षक , गणतंत्र, बयान , भयानक सपना , हिरणियां आदि जैसी कथाएं न केवल सामाजिक मानसिकता पर चोट करती दिखाई देती हैं, अपितु समाज में हो रहे उन कार्यकलापों को तीखे कटाक्षों के ज़रिये उजागर भी करती हैं जो एक निकृष्ट सोच का परिणाम होती हैं। :-

"स्टेनो भन भना कर बिग बॉस के कमरे में चली गयी। अगले दिन बॉस के नाम पट्टिका की जगह  स्टेनो का नाम था।" / अदा 

"शाम को एक नयी कहानी ने जन्म लिया।  अब वह कई बार छप चुकी हैं , पत्रिका और क्लब में।"/ एडिटर

"अगले दिन अख़बार में खबर छपी - जंगल में एक युवती को जानवर ने अपना शिकार बनाया। नेता जी का प्रचार अनवरत चल रहा है।  चमचे दाव छिपाये मस्त सांड की मानिंद घूम रहें हैं, हाथ जोड़ने की नौटंकी करते।  "/ दाव

'सर ! मैं अपनी काबलियत पर भरोसा करती हूँ , देवदासी बनना मुझे मंज़ूर नहीं।' 
कमर अनेक झन्नाटोँ से गूँज रहा था।  /देवदासी

" अगर हम इस नेता की बातों में नहीं आते तो आज हमारे बच्चे ज़िंदा होते "/ समरसता

"पड़े रहो चुपचाप और सो जाओ।  मशीन तो मैं भी नहीं हूँ, सुबह पांच बजे उठना है और चूल्हे चौके में खटना है।  हिम्मत नहीं है अब तुम्हारे लिए बिछने की मुझमे "/ गुलामी का अनुबंध

बहु के पोते से कहे शब्द कानो में हथोड़े से बज रहे थे।  " दादा से दूर से बात किया करो .......जर्म्स लग जायेगे बीमारी के "/ जर्म्स

लेखक शब्द मसीहा प्रशंसा की पात्र हैं जिन्होंने अपनी इन छोटी छोटी कहानियों को भावशैली और भाषाशैली की प्रभावात्मकता से बखूबी सवांरा है। संकेतात्मकता और व्यंग्यात्मकता को  लेखक ने हर कथा में भरपूर जिया है।  प्रत्येक लघु कथा का कथ्य एक अनोखे शिल्प विधान के साथ संरंचित यथार्थ के धरातल पर उस तीर के समान प्रतीत होती है जो पाठक के मछली रुपी हृदय को भेदने हेतु तत्पर है। 

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बहुत कुछ घटित होता है और हर बार कुछ  नया I इसीप्रकार से कथा-कहानी में भी अगर कुछ नयापन नहीं होगा तो पाठकों की रूचि भी उनमे नहीं रहती I स्त्री का शोषण, , गरीबी, बुज़ुर्गों की उपेक्षा, पति-पत्नी के सम्बन्ध, लाचारी,लचर मानसिकता , राजनीतिक पैंतरे  जैसे विषयों पर अनगिनित बार लिखा जा चुका है तो अब रचनाकार कुछ नया तो लिखे चाहें विषय यही क्यों ना हों I इसी में रचनाकार की प्रवीणता का आभास होता हैI लघुकथाएँ अपने आकार, प्रकार और प्रभाव से प्रशंसित होती हैं, यह मेरा मानना हैI केदारनाथ शब्द मसीहा ने इन्ही चिरपरिचित  विषयों को ही सही पर एक  नए मोहक अंदाज़ में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है कि  पाठक इन लघु कथाओं को पढ़ने पर  मजबूर हो जायेंगे। एक रचनाकार का दायित्व है की वह समाज को यथार्थ के धरातल पर रची रचनाओं को द्वारा  उन समस्याओं से अवगत छोटी छोटी कहानियों/ कविताओं  के माध्यम से कराएं जो समाज के सामने तो हैं पर उनपर कोई विचार नहीं करताI  यही नहीं रचनाकार समाज की चेतना पर चोट करते हुए तभी जागरूकता ला सकता है जब वह अपने पाठकों को उन समस्याओं का समाधान भी सुझाएँ, यह मेरी निजी राय है।

इन लघु कथाओं में लेखक ने उन तमाम बिम्बों को प्रतीक बनाया है जो समसामयिक हैं, आधुनिकता की छायी धुंध के सन्दर्भ में हैं और संवेदनाओं की सूक्ष्मता लिए हुए है।  यही कारण है कि केदारनाथ 'शब्द मसीहा ' की हर कथा पाठकों को प्रवाहमयी और जीवंत लगेंगी................ शायद सआदत हसन मंटों की तरह।////////////////////////
त्रिभवन कौल
स्वतंत्र लेखक-कवि
06-03-2017




ज़िंदा है मन्टो ( लधु कथा -संग्रह ) / केदारनाथ 'शब्द मसीहा '
के बी एस प्रकाशन , नई दिल्ली -११००१९



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पर्पल पेन की फाल्गुनी काव्य गोष्ठी ~ नवरंग ~








The day, the 5th of March, 2017,  was a moment to cherish when I met two of the India’s best Gazhalkars Sarvshri Sarwat Zamaal Sahib and Rajinder Nath ‘Rahber’ ji. The occasion was Navrang (Kavy Ghoshti ) held under the aegis of Purple Pen organised by its founder Vasudha Kanupriya at the Press Club of India. Some clicks of the occasion 
पर्पल पेन की फाल्गुनी काव्य गोष्ठी ~ नवरंग ~ का आयोजन 05 मार्च, 2017 को प्रेस क्लब आॅफ इंडिया में संपन्न हुआ । कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्व प्रसिद्ध ग़ज़लकार श्री राजेन्द्र नाथ रहबर जी ने की व मशहूर शायर श्री सर्वत जमाल मुख्य अतिथि थे । दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और मध्य प्रदेश से आये पर्पल पेन के सदस्यों और आमंत्रित शायरों ने अपने बेहतरीन काव्य पाठ से आयोजन को यादगार और सफल बनाया । 
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Saturday 4 March 2017

द्विपदी -13 (Couplet-13)

द्विपदी -13 (Couplet-13)
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 ज़िन्दगी  इ सी जी की बेतरतीबियों से सजे, तो ही अच्छा

सीधी सपाट हो जाए तो पुष्पांजली का  दौर चला आता है।

Zindgi ECG kee betarteebiyon se saje, to hee achcha

Seedhi spat ho jaaye to pushpanjali kaa daur chala aata hai.
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