Wednesday 8 March 2017

--"प्रेस क्लब आॅफ इण्डिया " में बही फाल्गुनी काव्य रसधार ---





--"प्रेस क्लब आॅफ इण्डिया " में बही फाल्गुनी काव्य रसधार ---
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05/03/2017 नई दिल्ली ।
पर्पल पेन सृजनात्मक समूह द्वारा होली के उपलक्ष्य में फाल्गुनी काव्यगोष्ठी का आयोजन रविवार 5 मार्च को प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया में किया गया ।कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वप्रसिद्ध गज़लकार श्री राजेंद्र नाथ रहबर जी ने की ।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में ख्याति प्राप्त शायर सर्वत जमाल जी पधारे ।इस पावन अवसर पर पर्पल पेन के कवियों सहित मुख्य रूप से आमंत्रित किए गए कवि /शायर कमर बदरपुरी , अरविंद असर ,फैज गाजीपुरी, राजीव रियाज़ ,हबीब सैफी जी उपस्थिति रहें ।
कार्यक्रम के आरंभ में राजेंद्र नाथ रहबर, सर्वत जमाल जी ने पर्पल पेन की संस्थापिका वसुधा कनुप्रिया जी को स्मृति चिह्न व पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया ।राजेंद्र नाथ रहबर ,सर्वत जमाल जी को दिलदार देहलवी व त्रिभुवन कौल जी ने पुष्प गुच्छ दें व शाल पहनाकर सम्मानित किया ।
कार्यक्रम का शुभारंभ उभरती हुई युवा कवियित्री मनीषा चौहान जी ने फाल्गुनी गीत - "होली के रंग में रंग श्याम तुम खेलो मेरे संग" से किया तथा वाहवाही व तालियाँ बटोरी ।उसके बाद बरिष्ठ कवियित्री इन्दिरा शर्मा जी ने कुछ यूँ कहा - चहकी होली मदमस्त फिर रही गली-गली । दिलदार देहलवी जी ने शेर पढ़ा- दुःख में काम आते नही है दोस्त, दुश्मनों के भी पते रखना ।दिलदार देहलवी जी के एक शेर को सुनकर अध्यक्ष महोदय श्री राजेंद्र नाथ "रहबर " जी ने एक शेर यूँ पढ़ा- तेरी रफ्तार पर उमरे-गुरेजा-शक गुजरता है,
लिए जाती है तू मुझको कहीं आहिस्ता -आहिस्ता ।महफिल वाह वाह और तालियों की गड़गड़ाहट से झूम उठी ।
रजनी रामदेव जी ने अपने भाव कुछ यूँ व्यक्त किए- कभी फूल सँग होली,कभी लट्ठ की ठिठोली ।साथ ग्वाल- वाल टोली होली मन भाई रे ।
अरविंद कर्ण जी ने राजनीति पर व्यंग्य करते हुए यूँ पढ़ा - देखो अपने भी अच्छे दिन आ गए, इस होली हम रंगों में नहलायें जायेंगे ।
राज भदौरिया जी ने तरन्नुम में एक गीत पढकर सभी का मन मोह लिया ।
त्रिभुवन कौल जी ने एक शेर यूँ पढ़ा - 

रात भर सोता रहा अल्फाज़ की चादर लपेटे, 
सुबह उठा तो एक नज्म़ का दीदार हो गया ।

इसी कड़ी में ख्याति प्राप्त युवा कवि श्वेताभ पाठक जी ने जब - "श्याम रंग से श्वेत हुआ मन जाता, लाख छुटाऊँ छूट नहीं अब पाता " गीत अपने गायन के लाजबाब अंदाज में पढ़ा तो पूरी महफिल झूम उठी ।
नंदा नूर जी ने यूँ पढ़ा - किसी -किसी को ये खुदा की देन होती है, नहीं है सबके मुकद्दर में शायरी करना ।
वसुधा कनुप्रिया जी ने अपने भावों को यूँ व्यक्त किया- खुद तो हो बेशर्म सीधे दिल में आकर बस गए, और मुझसे रोज कहते हो कि शरमाया करो ।
हबीब सैफी जी ने कुछ यूँ पढ़ा - पसीना जिस्म से बहना भी अच्छा है, किसी मजदूर को शूगर की बीमारी नहीं होती ।
राजीव रियाज़ जी ने कुछ यूँ पढ़ा - जो अश्कों की तुम्हारें ये लड़ी है, हमारा रास्ता रोके खड़ी है ।फैज़ गाजीपुरी जी ने यूँ पढ़ा - तुम हो तो बुलंदी कदम चूमेगी , किस तरह मैं उडूँगा एक पर के साथ ।अरविंद असर जी ने एक शेर यूँ पढ़ा - नगर के सारे निवासी घरों में दुबके है, कि आज अपने महल से निकल रहा राजा ।कमर बदरपुरी जी ने एक शेर यूँ पढ़ा - हर इक मोड़ पर उसका खयाल क्यूँ आया है, जबाब जिसका नहीं वो सवाल क्यूँ आया है ।
मुख्य अतिथि सर्वत जमाल जी ने काव्यपाठ करने वाले युवा रचनाकारों मनीषा चौहान, श्वेताभ पाठक, विवेक शर्मा ' आस्तिक ', अभिषेक झा आदि की रचनाओं को खूब सराहा व उन्हे साहित्य का भविष्य बताकर संबल प्रदान किया ।और अपने शेर यूँ प्रस्तुत किए - आप खुशहालियाँ बयान करें, मुल्क में खुदकुशी किसान करें ।
इस तरफ आदमी उधर कुत्ता, बोलिए किसे सावधान करें ।
इसी के साथ काव्यगोष्ठी में पधारे डाॅ गुरविंदर बांगा जी ,सुदेश कुमार मेहर जी, चन्द्रकांता सिवाल जी ,निशि शर्मा " जिज्ञासु जी , अभिषेक झा जी , विवेक शर्मा ' आस्तिक ' ने भी फाल्गुनी रंग में रंगी कवितायें पढ़कर सभी को आनन्दित कर दिया । कार्यक्रम का संचालन सुश्री निशि शर्मा 'जिज्ञासु ' जी ने बहुत ही सुंदर तरीके से किया।अंत में पर्पल पेन की संस्थापिका व संचालिका सुश्री वसुधा कनुप्रिया जी ने राजेंद्र नाथ रहबर जी, सर्वत जमाल जी एवं काव्यगोष्ठी में आए हुए सभी कविगणों का हृदय तल से आभार व्यक्त किया ।कार्यक्रम के उपरांत वसुधा कनुप्रिया जी ने होली का माहौल बनाकर सभी के रंग का टीका लगाया ।
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______ प्रस्तुति - @विवेक शर्मा " आस्तिक "

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