Wednesday 5 July 2017

हिंदी और आभासी दुनिया।

हिंदी और आभासी दुनिया।
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फेसबुक और ब्लॉग सहित विभिन्न वेबसाइट के माध्यम से हिंदी  में जो भी रचनात्मक कार्य हो रहें  हैं वह हिंदी भाषा के उत्थान के लिए एक ऐसा माध्यम सिद्ध हो रहें हैं जो ना केवल परस्पर सवांदात्मक, मनोरंजकता से भरपूर, ज्ञानवर्दक हैं अपितु हिंदी भाषा के सर्वागीण विकास के लिए और हिंदी भाषा को अपना उचित स्थान प्राप्त कराने हेतु अंगद का पैर साबित हो रहें हैं।  रचनाओं का स्तर बुरे से अच्छा और बहुत अच्छा हो सकता है पर एक बात तो स्पष्ट है की आभासी दुनिया के सामाजिक नेटवर्किंग माध्य्म ने हिंदी भाषा के हित में सारे संसार में, आप माने या ना माने, एक क्रांति का आगाज़ कर दिया है। 

हर रचना पर दोस्तों की, प्रियजनों की, रचनाकारों की भागीदारी,   टिप्णियों / प्रतिक्रियाओं  के रूप में देखने  को  मिलती है। टिप्णियां अक्सर ' बहुत खूब, वाह -वाह , अति सुंदर , खूब कहा , क्या बात है' इत्यादि तक सीमित रह जाती है। कभी कभी तो पाठक रचना पढता  ही नही बस अपने ऊपर की किसी सदस्य द्वारा टिप्पणी के आधार पर ही अपनी टिप्पणी प्रेषित कर देता है।   फिर भी संवाद से भरपूर प्रतिक्रियाएँ और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पिणियां ,रचनाकार और पाठक की बीच एक  पुल का कार्य करती है और  हिंदी के संवर्धन  दिशा की ओर इंगित करती है।पर समस्या इसमें समयाभाव कारण आती है। हर भागीदार अगर एक रचना पर  ईमानदारी से अपना समीक्षात्मक पक्ष रखना चाहे तो वह केवल  दो चार रचनाओं पर ही अपनी उपस्तिथि दर्ज करा सकता है।  इसीलिये  रचना पर शायद अपनी प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया दे कर दूसरी रचना पर अपनी उपस्तिथि दर्ज कराता है।  इसका कारण यथासंभव किसी भी मित्र को नाराज़ नहीं करने का होता है।  पर यदि मित्र/पाठक समझदार है और अपने मित्र को भली भाँती समझता है तो वह अपनी सीमाओं के साथ साथ अपने मित्र की सीमायें भी समझता होगा। 

रचनाकार यदि किसी विशेष मित्र को , पाठक को  अपनी रचना का पठन कराना चाहता है तो वह ' नत्थी /टैगिंग ' का सहारा ले सकता है बशर्ते वह मित्र टैगिंग के लिए सहमत हो। टैगिंग में स्पष्टवादिता का सहारा लेना बहुत आवश्यक है।  यदि किसी मित्र को टैगिंग पसंद नहीं है तो रचनाकार के पहले टैग पर ही उसको सूचित कर देना चाहिए।  दूसरा तरीका यह भी है की टैग को सर्वथा नज़रअंदाज़ कर दें।  अपनी वाल को केवल अपने पोस्ट के लिए सुरक्षित कर लें ताकि आपके चाहने पर ही टैग की हुए रचना इत्यादि आपके वाल पर दिखाई दे। 

देखा जाए तो फेसबुक पर ही  हिंदी भाषा के  साहित्यक गतिविधियों की भरमार है।  विश्व हिंदी संस्थान कनाडा , युवा उत्कर्ष साहित्यक मंच , मुक्तकलोक , कवितालोक ,पर्पल पेन , आगमन साहित्य समहू, वर्ण पिरामिड, ट्रू मीडिया साहित्यक मंच, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी  जैसे मंचों की भागीदारी  हिंदी को मुख्य धारा की सर्वप्रथम और  प्रतिष्ठित भाषा के रूप में स्थापित करने की दिशा में  बहुत ही  उत्साहजनक सिद्ध हो रही है। इन सभी मंचों पर भागीदार /रचनाकार /पाठकगण की प्रतिक्रियाएँ बहु आयामी बन गयी हैं। विषय /स्तिथि आधारित विश्लेषणात्मक , समीक्षात्मक , प्रशंसात्मक  जहाँ एक ओर तो  कभी कभी विनोदी, शरारती , शिकायती टिप्पणीयां दूसरी ओर सभी सदस्यों को हिंदी पठन और लेखन की ओर प्रेरित करती हैं। 
मैं और कहीं ना जा कर फेसबुक की ही बात करता हूँ। साहित्यक गतिविधियाँ एक आंधी समान नवांकुरों को, लेखकों को , स्थापित और प्रीतिष्ठित साहित्य मनीषियों को अपनी चपेट में ले रहीं  है।  प्र्त्येक साहित्यक समहू एक -पत्रिका का रूप जैसे धारण कर रहा है। कविताओं और गद्य के माध्यम हर प्रकार के विधाओं में, रसों में रचनाओं को स्थान तो मिल ही रहा है , साथ ही सीखने को -सिखाने पर भी बल दिया जा रहा है।  सबको अपनी बात कहने की भरपूर स्वतंत्रता  है छपने वाली पत्र -पत्रकाओं  में यह स्वतंत्रता निहित नहीं है।  छपने वाली पत्र -पत्रिका में छपने वाली विषय वस्तु पर संपादक का पूर्ण अधिकार होता है।  वह किसी भी लेख को , कहानी को , कविता को , टिप्पणी को निरस्त कर सकता है।  ज़्यादातर छपने वाले अखबार , पत्र -पत्रिका उनके मालिकों की विचारधारा को ही पल्लवित करती हैं या उनके कहन अनुसार संपादक कार्य करता है।  यह आभासी दुनिया में नहीं होता है।  जब तक कि अभद्र और अश्लील टिप्पणियां कविता / लेख/कहानी  ना हों , हर रचना  को फेसबुक पर उस विशेष  समहू के नियमानुसार प्रेषित कर सकतें हैं।  यही  सबसे बड़ा अंतर हैं  आभासी दुनिया का और वास्तविक दुनिया का।  हाँ इसमें एक अपवाद के रूप में मैं ट्रू मीडिया द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'ट्रू मीडिया ' को देखता हूँ। इस पत्रिका के विशेषांकों द्वारा किसी भी नामचीन साहित्यक शख़्सियत या एक गुमनाम पर हिंदी भाषा के संवर्धन , सरंक्षण और  प्रचार -प्रसार की   अभिलाषा लिए रचनाकारों से भी रूबरू कराने का श्रेय इस पत्रिका को जाता है।

आभासी दुनिया या अंतर्जाल के सामजिक निर्गमन में सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि मेरे जैसे आम आदमी विभिन्न विषयों पर अपनी बेबाक राय या टिप्पणी पोस्ट कर सकतें हैं।  प्रत्युत्तर में कोई मित्र/मित्रगण   अपनी बात रखना चाहे तो एक बहस की सी चाल बन जाती है। अपने अनुभवों को, अपने ज्ञान को साझा करने का इससे अच्छा मंच भला और कहाँ मिल सकता है। कुछ पोस्ट या टिप्पणियां मनन योग्य होती हैं, कुछ ज्ञानवर्दक तो कुछ हिंदी के प्रचार -प्रसार में योगदान देते हैं ,कुछ केवल पारिवारिक होती हैं और कुछ सीखने -सिखलाने का कार्य करती हैं। मित्रगण , दूर दराज या निकट सम्बन्धियों के साथ संपर्क में रहने का अंतर्जाल /आभासी दुनिया एक संपर्क साधन का कार्य कर रहा है इसको नकारा नहीं जा सकता।  समाजिक संपर्क में अग्रणी , बातचीत का एक अवसर तो प्रधान करता ही है पर हर व्यक्ति के उसकी क्षमता अनुसार अपनी बात रखने का एक अवसर भी प्रधान करता है, लेखन द्वारा।  हाँ अगर कुछ कमी है तो वह है कॉपीराइट के दुरूपयोग का।
त्रिभवन कौल 
स्वतंत्र लेखककवि
सम्पर्क :- kaultribhawan@yahoo.co.in

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2 comments:

  1. via fb/TL
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    Dildar Dehlvi
    सटीक भाषा में लिखे आपके विचार पड़ कर अच्छा लगा जनाब
    July 5 at 6:21pm
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    Pratima Rakesh
    Print media में संपादक की पसन्द नापसंद पर निर्भर है रचनाओं का छपना या ना छपना
    July 6 at 10:47am
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    Deepmala Maheshwari
    Bahut sundar likha h sir . Sath h ap jis tarah se shabdo ka chayan karte h wo bahut h sarahniy h Bahut bahut badhaeya.Truely inspired from u.
    Like • Reply • 2 • July 6 at 4:43pm
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  2. Pintu Mahakul
    Congratulations for such nice publication. This article is really excellent and thrill giving. Very beautifully penned this article is.
    July 9 at 5:33pm
    ---------------------via fb/TL

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