Wednesday 28 November 2018

युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच की पांचवी वार्षिकी समारोह



https://www.youtube.com/watch?v=QvspymIAQJY

हम तो बूँद थे जो आज बन गए झरना
हौसले इतने कि सागर बन दिखायेगें।।
 त्रिभवन कौल 

दिनांक २५ नवंबर २०१८  के दिन  युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास ) द्वारा आयोजित  पांचवें वार्षिक समारोह के भव्य आयोजन और सफलता के लिए हार्दिक बधाई । आदरणीय अनूप श्रीवास्तव (वरिष्ठ साहित्यकार ,व्यंग्यकार एवं पत्रकार(पूर्व संपादक स्वतंत्र भारत /लखनऊ ) की अध्यक्षता एवं मुख्य अतिथि गुरमीत बेदी ,वरिष्ठकवि ,कथाकार (उपनिदेशक,जनसंपर्क विभाग ,हिमाचल प्रदेश ) की गरिमामयी  उपस्थिति में आयोजित इस अखिल भारतीय साहित्यिक समागम में  अतिविशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार एवं समाज सेवी डॉ अशोक मैत्रेय, डा. दिव्या बालजीवन (मॉरिशस), श्री डी.पी.मिश्र (उप निदेशक ,भारत सरकार) डॉ रामकुमार चतुर्वेदी(व्यंग्यकार सिवनी म.प्र ),डा.हरिसिंह पाल,महामंत्री नागरी परिषद् ,दिल्ली, वरिष्ठ साहित्यकार श्री दर्शन बेजार एवम वरिष्ठ शिक्षाविद श्री जय प्रकाश कस्तलिया ने अपनी  उपस्थिति  ने मंच को साहित्यिक यात्रा के शिखर पर पहुंचा दिया। देश के प्रत्येक भाग से आये लगभग २०० लेखकों और कवियों /कवियत्रियों ने  मंचासीन अतिथियों का उदबोधन एवं काव्य पाठ ,  सम्मान समारोह , परिचर्चा , टिकवांडो प्रदर्शन , पुस्तकों का लोकार्पण ( उत्कर्ष की और /मंच की स्मारिका , भीड़ तो ज़िंदा है /डॉ. दमयंती शर्मा दीपा , सप्त कलश /डॉ. अतिराज सिंह , हृदयांगन /विधु भूषण , सरल छंद विधान / सुरेश पाल वर्मा जसाला ) उपस्थित सुधीजनों की करतल ध्वनि के साथ संम्पन्न हुआ। उपस्थित सम्माननीय कवियों /कवियत्रियों  के काव्यपाठ का भरपूर आनंद उठाया। मंच के गौरव के लिए उत्कर्ष गान का चयन करना और  मंच की और से प्रमुख सम्मानों को सम्मान राशि प्रदान करना मंच की साहित्यिक यात्रा में  ऊंचाईयों को छूने के लिए पहला कदम है। आदरणीय श्री रामकिशोर उपाध्याय जी के सुदृढ़ नेतृत्व ने   , श्री ओमप्रकाश शुक्ल जी की कर्मठता ने  , आदरणीय सुरेशपाल वर्मा 'जसाला ' जी की कार्य क्षमता ने  तथा सभी कार्यकारणी के सदस्यों के  सहयोग ने  इस मंच को एक प्रमुख साहित्यिक मंच के रूप में स्थापित कर दिया है। 

हम तो बूँद थे जो आज बन गए झरना
हौसले इतने कि सागर बन दिखायेगें।।
 त्रिभवन कौल 

समारोह की भव्यता और सफलता के लिए , युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास) का कार्यकारी अध्यक्ष और स्वागत अध्यक्ष होने के नाते , मैं आप सभी  सम्माननीय सहभागियों का , भागीदारों का , समारोह अध्यक्ष , मुख्य अतिथि का एवं विशिष्ठ अतिथियों तथा मंच  के सभी पदाधिकारियों, एवं कार्यकारणी के सभी  सदस्यों का तहे दिल से आभार प्रकट करता हूँ। आप सब की स्नेह भरी उपस्थिति को कोटी कोटी नमन।

एक नोट हार्दिक आभार का :- समारोह से एक दिन पहले युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (न्यास ) के महासचिव श्री ओमप्रकाश शुक्ल जी के निवास स्थान एवं मंच के बिहारीपुर कार्यालय में कार्यकारणी की बैठक हुई जहाँ २५ नवंबर २०१८ को होने वाली वार्षिकी के संबंध में विस्तार से चर्चा की गयी।  आत्मीय अतिथि सत्कार के लिए श्री ओमप्रकश शुक्ल जी का हार्दिक आभार। 

समारोह के कुछ उपलब्ध छाया चित्र आपके अवलोकन के लिए प्रेषित। सप्रेम  ।
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Thursday 15 November 2018

वर्ण-पिरामिड (69-70)


वर्ण-पिरामिड ( शीर्षक = धुआं / धूम्र / धुम्मा आदि समानार्थी शब्द)
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हो 
धरा 
कचरा 
प्रदूषण 
वातावरण 
ज़हरीला धुआँ 
आरोप–प्रत्यारोप।   

हाँ 
धुआँ 
विकट 
ताज़ी हवा 
सांस दूभर
कैंसर विकार 
लानत भ्रष्टाचार।
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल 

काव्य रंगोली पत्रिका का अक्टूबर २०१८ के अंक में

मित्रों। लखीमपुर खीरी ( उत्तर प्रदेश ) से  प्रकाशित काव्य रंगोली पत्रिका का अक्टूबर २०१८ के अंक में , काव्य रंगोली के संस्थापक, प्रबंधक एवं प्रधान सम्पादक  आशुकवि श्री नीरज अवस्थी ने आपके  मित्र को पत्रिका का  अतिथि सम्पादक होने का सम्मान दिया और साथ में मेरी लघु कथा ' अंदेशा ' को भी इस प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। आशुकवि श्री नीरज अवस्थी जी का में हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। सप्रेम।
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Monday 12 November 2018

अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव 2018



मित्रों ,आप सभी युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के पंचम अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव में आगामी 25 नवम्बर 2018 में सादर आमंत्रित हैं | आपकी उपस्थिति हमारे लिए प्रेरणादायक सिद्ध होगी। सप्रेम।




Sunday 11 November 2018

"कारवाँ" काव्य गोष्ठी का आयोजन

दिनांक ११ नवंबर २०१८ को  लोदी गार्डन (नई दिल्ली ) में पर्पल पेन  द्वारा "कारवाँ" काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। दिल्ली , एन सी आर से आये लगभग २५    साहित्यकारों/कवियों/कवित्रियों अपनी रचनाओं से प्रतिभागियों के संग संग लोधी गार्डेन में पिकनिक पर आये लोगों कर और पर्यटकों  का भरपूर मनोरंजन किया। इस अवसर पर युवा उत्कर्ष साहित्यक मंच के अध्यक्ष ( श्री रामकिशोर उपाध्याय जी ), इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल के संस्थापक ( डॉ. चंदरमणी ब्रह्मदत्त जी ),  नवांकुर साहित्य सभा के महा सचिव और  समाचार पत्र  अद्भुत  इंडिया के संस्थापक सम्पादक ( श्री  काली शंकर सौम्य जी ), सुप्रभात साहित्यिक मंच के संस्थापक (श्री सुरेशपाल वर्मा जसाला जी ) और भारतीय साहित्यिक विकास मंच के अध्यक्ष  (श्री गुरचरण मेहता 'रजत' जी )  और मुंबई से पधारे मशहूर ग़ज़लकार जनाब शकील वारसी जी एवं गीतकार श्री प्रेम बिहारी मिश्र जी ने अपनी गरिमामयी  उपस्थिति दर्ज़ की और अपनी रचनाओं से सभी का मन मोह लिया। इस काव्य गोष्ठी का सफल संचालन अपने चिर परिचित अंदाज में पर्पल पेन की संस्थापक सुश्री वसुधा कनुप्रिया ने किया। ग़ज़लकार जावेद अब्बासी जी का जन्मदिन काव्य गोष्ठी के अंत में एक केक काट कर मनाया गया  और उनको सभी की बधाई और शुभकामनायें प्राप्त हुई। इस काव्य गोष्ठी के , छाया चित्रों में कैद चंद पल आप मित्रों के समक्ष प्रस्तुत हैं।  सप्रेम।
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Tuesday 30 October 2018

Threnody of The Truth


 Threnody of The Truth
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The moon
I want to pull
Out of jaws of clouds
To dispel the darkness
Shadowing over the human psyche of intolerance.

The truth
I want to reveal
With the churning of thoughts
Injustice meted out long ago
Sure, will be marginalised by so and so.

The  plough
I want to plough
Deeper and deeper to sow the seeds
To grow plants of love ignoring  power of sleaze
Bullshit ! None cares when a rapist gets his release.

The  victim
I want to see
Brave enough to come out of closet
To tell also story of partnering the crime
Doesn’t it take two words up-down to rhyme ?

The poem
I want to write
Pour my heart and cleanse my soul
May be booed as truth is a bitter pill
So is digging the grave and beans to spill.
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All rights reserved/Tribhawan Kaul

Saturday 27 October 2018

औकात



वह पढ़ा लिखा बेकार था। नौकरी का जुगाड़ कहीं भी नहीं हो पा रहा था। जगह जगह मज़दूरी भी की पर हार नहीं मानी । एक कंपनी में साक्षात्कार दे कर निकला था। आशा थी कि इस कंपनी में नौकरी लग जायेगी। भूख लग रही थी। सामने एक रेहड़ी पर मूंगफली भुनती  देख वह उस ओर अग्रसर हुआ। पटरी पर बैठे एक हट्टे कट्टे  भिखारी ने हाथ फैला दिए। अच्छा तो नहीं लगा उसे उस नौजवान को भीख मांगते देख पर " हाथ फैलाने वाले पर हमेशा दया भाव रखना चाहिए ' के संस्कारों ने मजबूर कर दिया।
" मज़दूरी क्यों नहीं करते ? भीख मांगने से तो अच्छा है। " उसने बटुआ निकलते हुए कहा।
" जब हज़ारों भीख मांग कर कमा लेते हैं तो मज़दूरी करने की क्या ज़रूरत। " भिखारी हंस कर बोला मानो उसकी पढ़ाई का मज़ाक उड़ा रहा हो।
 छोटी पॉकेट में  दो का सिक्का था। बड़ी पॉकेट में केवल एक बीस  का नोट था, जो मूंगफली के लिए और उसके घर वापसी के लिए पर्याप्त था। ना चाहते हुए भी उसने दो का सिक्का निकाला और उस नौजवान  भिखारी  को पकड़ा दिया। भिखारी  ने बड़ी ही हिकारत से उसे देखा और कहा।
" बस इतनी ही औकात है ?"
" तुमसे तो अच्छी है " उसने उत्तर दिया और अपनी मंजिल की और चल पड़ा। 
 त्रिभवन कौल  
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Friday 26 October 2018

दोहा दोहा नर्मदा '

विभिन्न संस्थानों द्वारा प्रकाशित , २०१८ में  दिल्लीवाली (अंग्रेजी/हिंदी ), काठी का घोडा , भाव कलश  काव्य संकलनो के उपरांत  आज 'दोहा दोहा नर्मदा ' की  प्रतियाँ डाक द्वारा प्राप्त हुई।   आदरणीय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ' एवं प्रो (डॉ )साधना वर्मा जी द्वारा संपादित विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर की प्रस्तुति ' दोहा दोहा नर्मदा ' संकलन में मेरे द्वारा रचित १०० दोहे सम्मलित किये गए हैं।  दोहे लेखन के लिए आदरणीय आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल ' जी ने मुझको दोहा लेखन की बारीकियां समझाते  हुए प्रोत्साहित किया जिसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूँ।


Wednesday 24 October 2018

मुक्तछंद काव्य का शिल्प विधान


 मुक्तछंद काव्य का शिल्प विधान
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मुक्त छंद का समर्थक उसका प्रवाह ही है। वही उसे छंद सिद्ध करता है और उसका  नियमारहित्य  उसकी 'मुक्ति"।
............................................................. सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'/ 'परिमल' #

महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' ने मुक्त छंद को हिन्दी काव्य में संस्थापित किया।  उनका उपरोक्त कथन मुक्तछंदीय कविता को छन्दयुक्त कृतियों के मध्य एक सार्थकता प्रधान करता है
हमेशा जब मुझसे पूछा जाता है कि  मुक्तछंद/ स्वच्छंद छंद/ अतुकांत कविता में आप कवितायेँ क्यों लिखतें हैं तो अनायास ही मुख से निकल पड़ता है भावों के तीव्र वेग मुझे भावों को छंदों में  बांधने का अवसर ही नहीं देते।  जैसे ही भाव आतें हैं , लिख देता हूँ या यूँ कहूं को लिख लिख जाते हैं। मन कहता है, मस्तिष्क समझता है और उँगलियाँ  थिरक उठती हैं कागज़ पर, टंकण मशीन या फिर लैपटॉप के की बोर्ड पर।  यह नहीं कि मैं छंदबंध कविता नहीं लिख सकता, लिख सकता हूँ और लिखी भी हैं  पर जब बात मुक्तछंद की आती है तो मैं कहता हूँ :-  

"रचनायें न तोलो छंद मापनी की तराज़ू में
मेरी भावनाओं को खुला आसमान चाहिए।"
............................................(बस एक  निर्झरणी भावनाओं की/त्रिभवन कौल )

मुझसे फिर पूछा जाता है कि मुक्तछंद की क्या कोई अपनी विधा है ? इसका विधान/ शिल्प  क्या है , जैसे कि दोहों, मुक्तक ,चौपाई,रोला, कुंडलिनी इत्यादि में होता है ?  जवाब तो वैसे होना चाहिए कि छंदमुक्त का अर्थ ही जब छंदों से मुक्त रचना से है तो इसमें छंद विधि -विधान का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता पर मैं समझता हूँ की बेशक छंदमुक्त रचना में वार्णिक छंदों या मात्रिक छंदों की तरह वर्णो की या मात्राओं की गणना नहीं होती पर एक अच्छी  छंदमुक्त रचना का  निम्नलिखित मापदंडों पर आंकलन करना आवश्यक हो जाता है। यही मापदंड मुक्तछंद कविताओं की विधा को दर्शाते और सार्थक करतें हैं। 

1) कहन में संवेदनशीलता :- विषय में विषय के प्रति कवि कीं पूर्ण ईमानदारी और संवेदनशीलता होना आवश्यक है। कवि का अपनी बात रखने के एक ढंग होता है कविता किसी भी प्रकार की क्यूँ न हो, किसी भी विचारधारा को प्रकट क्यूँ न करती हो, असत्य नहीं होती. हाँ उस सत्य को दर्शाने के लिए कल्पना का सहारा एक आवश्यक साधन बन जाता है. चूँकि सत्य हमेशा से कटु रहा है तो विषय के प्रति संवदेनशीलता बरतना कवि का कर्तव्य हो जाता है।

2) प्रभावात्मकता :- जब तक एक छंदमुक्त कविता में सशक्त भाव , सशक्त विचार और सशक्त बिम्ब नहीं होंगे, रचना की प्रभावात्मकता ना तो तीक्ष्ण होगी ना ही प्रभावशाली     कविता अगर केवल भावनात्मक हो या केवल वैचारिक तो पाठक शायद उतना आकर्षित न हो जितना की उस प्रस्तुति में जंहाँ दोनों का समावेश हो. कोरी भावनात्मकता  या कोरी वैचारिकता कविता के प्रभाव को  क्षीण ही करतें हैं।

3) भाव प्रवाह :- छंदमुक्त कविता में भावों का निरंतर प्रवाह होना आवश्यक है अर्थात किसी भी बंद में भावों की शृंखला ना टूटे और पाठक को कविता पड़ने पर मजबूर करदे।

4) भाषा शैली :- मुक्तछंद कविता की भाषा शैली अत्यंत ही सहज, सरल और सर्वग्राही होनी चाहिए।  यदि कंही कंही तुकांत भी हो जाए तो कविता का काव्य सौंदर्य निखर उठेगा।  कहने का  तात्पर्य है  कि मुक्तछंदीय कविता गद्य स्वरूप नहीं लगनी चाहिए।

फेसबुक जैसी सोशल मीडिया पर कई बार पाया गया है कि किसी भी गद्य को टुकड़ों में बाँट कर उसको मुक्तछंद कविता के नाम से प्रकाशित किया जाता है। ऐसे  दुष्प्रयासों से रचना एक अर्थहीन गद्य ही बन कर रह जाती है ना की कविता।  मुक्तछंद या छंदमुक्त कविता में कविता के वह सारे गुण होने ज़रूरी हैं जो अपने प्रवाह से, कभी कभी गेयता से, तुकांत से मापनी रहित काव्य को एक ऐसा रूप दें जो मनोरंजन के साथ साथ एक गहन विचार को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत कर सके। यथा :-

तुम्हें खोजता था मैं,
पा नहीं सका,
हवा बन बहीं तुम, जब
मैं थका, रुका ।

मुझे भर लिया तुमने गोद में,
कितने चुम्बन दिये,
मेरे मानव-मनोविनोद में
नैसर्गिकता लिये;

सूखे श्रम-सीकर वे
छबि के निर्झर झरे नयनों से,
शक्त शिराएँ हुईं रक्त-वाह ले,
मिलीं - तुम मिलीं, अन्तर कह उठा
जब थका, रुका ।...................................सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता/प्राप्ति

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की कविता प्राप्ति में कंही भी गद्य का आभास नहीं होता। पर एक प्रवाह है , एक मधुरिम से गेयता का आभास होता है और एक विचार है जो मन को झंकृत करने में समर्थ है।  मुक्तछंद /छंदमुक्त/अतुकांत रचना का स्वरूप भी 'रसात्मक वाक्यम इति काव्यम'* को चरितार्थ करना ही होना चाहिये ।

 मुक्तछंदीय कविताओं में कोई नियमबद्धता नहीं है फिर भी उपरोक्त तत्व एक कविता को काव्य सौंदर्य प्रधान करने में और पाठकों के मन में अपनी छाप छोड़ने मंन सफलता प्राप्त करती है।
उर्दू के मशहूर शायरे आज़म मिर्ज़ा ग़ालिब उस काल में भी भविष्य के  निराला जी के शीर्ष कथन का अनुमोदन करते नज़र आते हैं जब  ग़ालिब कहते हैं  :-
 बकर्दे-शौक नहीं जर्फे-तंगनाए ग़ज़ल,
कुछ और चाहिये वुसअत मेरे बयाँ के लिये”.............(गालिब)#
(बकर्दे-शौक: इच्छानुसार, ज़र्फे-तंगनाए ग़ज़ल: ग़ज़ल का तंग ढांचा, वुसअत: विस्तार ।)
मिर्ज़ा ग़ालिब का यह शेर उनकी उस मज़बूरी को बयान करता है जिसमे वे अपनी इच्छानुसार अपनी बात को ग़ज़ल के तंग ढांचे में/ बंदिशों में रह कर नहीं सकते थे और उनको अपनी बात रखने के लिए उन्हें अधिक विस्तार की आवश्यकता प्रतीत होती थी । मुक्तछंद में रचना करने का साहस अगर पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' के उपरांत किसी कवि-शायर ने मुझे दिया है तो वह उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के इस शेर ने दिया जिसका भाव यह है की कवि बंदिशों में रह कर/ छंदों के विधि विधान में रह कर अपनी भावनाओं को थोड़े विस्तार के साथ या मुक्त हो कर नहीं कह सकता है ।
लेकिन यहाँ विस्तार का मतलब काव्य को गद्य रूप देना कतई नहीं है अपितु काव्य रस की व्यवस्था को ध्यान में रख कर मुक्तछंद के रचनाकार अपनी छंदमुक्त/स्वच्छंद छंद रचना  को वैचारिक, भावपूर्ण  कथ्य को प्रवाह और यति (जो अधिकतर अदृश्य रहता है )द्वारा सार्थकता प्रदान करता है। पंक्तियों के अंत  तुकांत हो तो सोने पर सुहागा पर  आवश्यक  नहीं। 

प्यार
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प्यार न वासना है न तृष्णा है
न है किसी चाहत का नाम
प्यार एक कशिश है
भावनाओं का महल है
जिसमे एहसास की इटें हों
विश्वास की नीव हो
संवेदना का गारा हो
गरिमा का जाला हो
तब प्यार की बेल
आकाश को छूती
पनपती है
यही सृजन है और सृजन
सृष्टि का जन्मदाता है.
---------------------त्रिभवन कौल    

त्रिभवन कौल 
स्वतंत्र लेखक -कवि
e-mail : kaultribhawan@yahoo.co.in
blog : www.kaultribhawan.blogspot.in 

*आचार्य विश्वनाथ (पूरा नाम आचार्य विश्वनाथ महापात्र) संस्कृत काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ और आचार्य थे। वे साहित्य दर्पण सहित अनेक साहित्यसम्बन्धी संस्कृत ग्रन्थों के रचयिता हैं। उन्होंने आचार्य मम्मट के ग्रंथ काव्य प्रकाश की टीका भी की है जिसका नाम "काव्यप्रकाश दर्पण" है

Sunday 14 October 2018

कुंडलियां # Me Too vs # We Too

हैश टैग मी टू कहे, कैसा यह व्यापार
लांछित तो सब हो गये, सत्य या निराधार
सत्य या निराधार, पुरुषो सावधान रहो       
मिलती कोई नार, बस कदम भर दूर रहो
कहता त्रिभवन कौल, बदनाम कल होगा तू
छेड़ो तुम भी राग, कहो हैश टैग वी टू

Haish tag mee too kahe, kaisa yah vyapaar
Laanchit to sab ho gaye, sty yaa niradhaar
Sty yaa niradhaar, prusho saawdhan raho
Milti koyi naar , bus kdam bhar door raho
Kahta tribhawan kaul, badnaam kal hoga too
Chedo tum bhi raag, kaho haish tag wee too.
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सर्वाधिकार सुरक्षित/ त्रिभवन कौल

Thursday 11 October 2018

Title of Honour


Kumarmani Mahakul <kumarmanimahakul3@gmail.com>
Oct 5, 2018, 8:05 AM
to me

To
Tribhawan Kaul
Birth Date: 01 January 1946 
Birth Place: Srinagar, Jammu and Kashmir, India
(As per information in profile of the poet in Poem Hunter)
E mail: kaultribhawan@gmail.com

Dear Sir
On behalf of all fellow poets, PH Family and our Mahakul family we have offered you a title of honour as, "Literarure Galaxy," due to your long time perseverance and contribution to the world literature on date 03 October 2018. The information is posted in your Poem Hunter Poet's Page on date 03 October 2018, Time 10:55:00PM.  You can visit URL https://www.poemhunter.com/tribhawan-kaul/

Regarding this title of honour a poem of notification is published in my poet's page in Poem Hunter titled as, "Attention to Titles of Honour (Part-8)." You can visit the URL https://www.poemhunter.com/poem/attention-to-titles-of-honour-part-8/

On behalf of all family members I congratulate you and wish you all the best. May God's grace fall on you and your family in abundance!

Yours sincerely,
Kumarmani Mahakul
(Freelance Poet & Philosopher)