Monday 19 February 2018

काव्य संगोष्ठी



११ फरवरी २०१८ को ट्रू मीडिया द्वारा युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के तत्वाधान में डॉ. देवनारायण शर्मा जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित 'ट्रू मीडिया' पत्रिका का लोकार्पण के साथ साथ  युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के संरक्षक एवं प्रबुद्ध  साहित्यकार .प्रो विश्वम्भर शुक्ल जी , (लखनऊ ) द्वारा रचित् पुस्तक "उम्र जैसे नदी हो गई" (गीतिका संग्रह )एवं श्री जगदीश शर्मा शेषी,( हरिद्वार) द्वारा लिखी पुस्तक "वर्ण पिरामिड छंद पर काव्य संग्रह" का भी विमोचन हुआ ! इस सुंदर आयोजन का मैं भी साक्षी बना।  इस दौरान मुझको हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्यकार आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल ( महान कवियत्री महादेवी वर्मा के भतीजे ) से भेंट और वार्तालाप करने का सुअवसर मिला। क्षण भर में कविता की रचना करना तो कोई उनसे सीखे। मैंने उनको अपनी कुछ पुस्तकें भेंट की तो उन्होंने मुझे अपनी  गीत -नवगीत काव्यसंग्रह ' काल संक्रांति का '  को प्रसाद स्वरूप मेरे हाथों में रख दिया कुछ इस तरह से :-

कौल है नवगीत का ,
यह पीर त्रिभवन की कहेगा
'सलिल' सम यह नर्मदा का
नीर पावन हो बहेगा।


हार्दिक आभार आदरणीय 'सलिल जी।

आयोजन में प्रसिद्द भोजपुरी कवि श्री गोरखप्रसाद मस्ताना जी  और  मिजोरम से आए मिजोरम यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्राध्यापक श्री सुशील कुमार शर्मा जी का भी अल्प समय के लिए सुखद सानिध्य प्राप्त हुआ।
आयोजन की विशेषता गीत-नवगीत और गीतिका के विषय में आचार्य श्री संजीव वर्मा सलिल जी , श्री गोरखप्रसाद मस्ताना जी और प्रो विश्वम्भर शुक्ल जी द्वारा की गयी चर्चा अति ज्ञानवर्दक रही। श्री  सुशील कुमार शर्मा  जी ने मिजोरम की सभ्यता एवं संस्कृति के विषय में अपने अनुभव भी से साँझा किये।
पूर्ण आयोजन का शानदार संचालन प्रख्यात टीवी और मंचीय कवि श्री विनय शुक्ल विनम्र जी  ने अपने ही  लाजबाब अंदाज में किया।आमंत्रित कवि गणो ने अपने  काव्य पाठ से श्रोताओं का मन मोह लिया। ट्रू मीडिया और युवा उत्कर्ष मंच को हार्दिक बधाई। उस आयोजन के प्राप्त चित्र आप सभी मित्रों के समक्ष प्रस्तुत है जो कवि मित्र सुश्री वसुधा कनुप्रिया जी  , सर्वश्री संजय कुमार गिरी जी , ऐ एस खान जी और जगदीश मीणा जी के सौजन्य से प्राप्त हुए हैं। सप्रेम। 
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Sunday 18 February 2018

सूक्ष्म कथा-3


एक माँ के जुड़वाँ बेटे थे।

एक बोला :- मुझको पड़ोस से भरपूर प्यार मिलता है। घरवालों से नहीं।  

दूसरा बोला :- मुझको घरवालों से भरपूर प्यार मिलता है पड़ोस से नहीं।

माँ के एक वक्ष से खून निकलने लगा दुसरे से दूध।

त्रिभवन कौल

Saturday 17 February 2018

LOST LOVE ( Translated into French )

Dear friends
This is the 16th poem of mine which has been translated into French by none other than Honourable Athanase Vantchev de Thracy, World President of Poetas del Mundo , undoubtedly one of the greatest poets of contemporary French.
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LOST LOVE
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Quote
Behold me not
with your lovely wide expressive eyes
I have no words for appreciation
you may be divine
withholding your desires
I am a mortal
yielding to
basic intentions.”
Unquote.

Remember the day
when we had met
I had said so
and you
blooming like a lotus
opened your arms.
I remained a mute witness
to a ravishing storm.

We never knew
what had struck
a volcano of possessiveness
or a love bug
both destroyed us
before we could shrug.

Ego made us discrete
pride to tweet
on cross ,we put our relationship
space ,we never wanted to yield.

Trust we lost
faith became lame
post-mortem we did
but it was never the same.

Where love has gone ?
Where should I find ?
Alas!
We have forgotten our ways
In our daily grind.
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All rights reserved/Tribhawan Kaul


L’AMOUR PERDU

" Ne me regarde pas comme ça
Avec tes beaux et grands yeux expressifs !
Je n'ai pas de mots pour te décrire,
Peut-être es-tu un être divin
Capable de retenir tes désirs,
Alors que moi, je ne suis qu’un simple mortel
Qui cède aux appels de ses instincts. »

Rappelle-toi le jour
Où nous nous sommes rencontrés,
J’avais parlé avec transport
Et toi,
Éclose comme un lotus,
Tu avais ouvert tes bras.
Je suis resté le témoin muet
D’une tempête qui m’avait ravi.

Nous n’avons jamais su
Ce qui nous avait frappés –
Le volcan de désir de possession
Ou la flèche de Cupidon,
Mais nous sommes tous deux restés étourdis
Avant même d’avoir dit « ouf ! »

Notre pudeur nous a rendus discrets,
Fiers d’échanger nos sentiments – 
Nous avons mis de la distance entre nous
Et personne n’a voulu céder le premier.

Nous avons perdu confiance l’un en l’autre,
Notre foi est devenu boiteuse,
Nous avons persisté à nous aimer après tout cela,
Mais ce n’était plus la même chose.

Où s’en est allé l’amour,
Où le retrouverai-je ?
Hélas!
Nous avons oublié comment nous comporter,
Trop plongés que nous étions dans nos soucis quotidiens.

Tribhawan Kaul

Traduit en français par Athanase Vantchev de Thracy
Translated into French by Athanase Vantchev de Thracy
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Born on January 3, 1940, in Haskovo, Bulgaria, the extraordinary polyglot culture studied for seventeen years in some of the most popular universities in Europe, where he gained deep knowledge of world literature and poetry.
Athanase Vantchev de Thracy is the author of 32 collections of poetry (written in classic range and free), where he uses the whole spectrum of prosody: epic, chamber, sonnet, bukoliket, idyll, pastoral, ballads, elegies, rondon, satire, agement, epigramin, etc. epitaph. He has also published a number of monographs and doctoral thesis, The symbolism of light in the poetry of Paul Verlaine's. In Bulgarian, he wrote a study of epicurean Petroni writer, surnamed elegantiaru Petronius Arbiter, the favorite of Emperor Nero, author of the classic novel Satirikoni, and a study in Russian titled Poetics and metaphysics in the work of Dostoyevsky.
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Friday 16 February 2018

'पर्यटन'


My poem "Paryatn" in hindi published in Vijay News dated 15 February, 2018
मेरी कविता 'पर्यटन' दिल्ली से प्रकाशित १५ फरवरी के विजय न्यूज़ में। सौजन्य :- श्री संजय कुमार गिरी (पत्रकार , कवि और चित्रकार )


पर्यटन
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ज़िंदगी, लहरों से खेलती
चेतावनियों की उपेक्षा करती  
पर भंवर की क्षुधा से बचते हुए 
लहरों के उतार चढ़ाव को झेलती 
दुःख ,भ्रम उम्मीदों, आकांक्षाओं का बोझा लिए 
समुन्दर में भटक रही  है
ढुलमुल और निराधार निर्णय ले कर I

गंतव्य की तलाश में
डालती  है अपना लंगर 
एक गहन विचार करने को
स्थिति समझ, बाहर निकलने को
अपनी तृष्णाओं ,आशाओं,अपेक्षाओं पर
संयम और आत्म नियंत्रण के साथ
फिर लंगर उठा 
पोत को निर्देशित कर
पहुंचती  हैं वांछित स्थान पर, ज़िंदगी II
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल
Also publbished in e-paper http://epaper.vijaynews.in/1543795
Page No. 12

सूक्ष्म कथा-2


पाकिस्तानी बंकरों से भारी गोलाबारी जारी थी।  

गोलियों से लहूलुहान रेंगते हुए रुद्र, रहमान, गुरमीत और थॉमस ने  बंकरों पर ग्रेनेडों से हमला 

कर दिया था । बंकर ख़ामोश हो गए थे। तिरंगे में लिपटे शहीदों की घर वापसी थी। धर्म कोने में 

खड़ा अपनी हार पर मुस्कुरा रहा था। 

त्रिभवन कौल 

Wednesday 14 February 2018

सूक्ष्म कथा-1



लड़के ने लड़की को गुलाब का फूल दिया। 

लड़की ने मुस्कुरा कर उसे बालों में सजा लिया। 

शहर में दंगा हो गया।

त्रिभवन कौल

Saturday 10 February 2018

कुण्डलिया





पथ्थरबाज़ वार करें ,बैठे चुप्पी साध 
जेल करें फिर छोड़ दें, लुप्त है शंखनाद 
लुप्त है शंखनाद , बच्चा  क्यों कोरट जाय
थू ऐसी सरकार, क्यों तनिक शर्म ना आय
पूछे रचनाकार , गुर्गे आये ना बाज़
पक्षी नमकहराम ,जो शह दें पथ्थरबाज़
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सर्वधिकार सुरक्षित त्रिभवन कौल
image curtsey :- google.com

HOPE





Hope
don’t betray me
clinging, 
I survive.

Hope
don’t overpower me
Clutching,
 I over estimate.

Hope
don’t be an illusion
Chasing, 
shattered I become.

Hope,
don’t raise expectations
Setbacks, 
I can’t endure.
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All rights reserved/ Tribhawan Kaul
image curtsey : Google.com

Wednesday 7 February 2018

महादेवी




महादेवी को जानिए, पदम विजेता शान 
सशक्त हिंदी साधिका सबसे प्रतिभावान
सबसे प्रतिभावान पर नाशुक्रे सारे
कुर्क आवास करें नासमझ फुकरे सारे
कहता रचनाकार समूचा बजाओ रणभेरी 
आवास बचाओ कहो जय जय महादेवी
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल

अंदेशा (लघुकथा)



अंदेशा (लघुकथा)
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इतवार का दिन होते हुए भी स्कूल में गहमा गहमी थी।  वार्षिक उत्सव की तैयारी ज़ोरों पर थी। १० वर्ष के मनुज ने डांस प्रैक्टिस कर,  गिटार पर हाथ साफ़ करने के इरादे से जैसे ही गिटार उठाया, स्कूल प्राणांग में अचानक उठे शोर ने  क्लास के सभी छात्रों -छात्राओं का ध्यान खींच लिया। सभी गलियारे में आ गए।  डांस सर एक लड़की को गोद में उठाये चिल्लाते हुए स्कूल एम्बुलेंस की ओर भागे जा रहे थे। प्रिंसिपल मैम , कोहली मैम , हेड गर्ल  और  कोर्डिनेटर सर उनके पीछे पीछे।  एम्बुलेंस के पास भीड़ लग गयी। मनुज ने देखा लहूलुहान और  खून से सनी स्कर्ट पहने आठवीं क्लास की छात्रा टीनी दीदी को एम्बुलेंस में डाला जा रहा था।  वह सहम गया। प्रिंसिपल मैम ने छुट्टी का ऐलान कर दिया। सभी बच्चों को बस में बिठा दिया गया।
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" माँ , आप बिलकुल मेरी चिंता मत करो।..... अभी तो चौथा ही महीना है।..... भुवनेश मेरा खूब ख्याल रखते हैं। मनु के बाद यह दूसरा  बच्चा होगा माँ। सभी बहुत खुश हैं।....... भुवनेश और मैं तो बेटी ही चाहते हैं।  मनु तो बहन बहन की रट अभी से लगा रहा है।.......  नहीं , स्कूल गया है। शाम तक आजायेगा। वार्षिक उत्सव में भाग ले रहा है वह।..... अच्छा रखती हूँ। इनको दोपहर की चाय चाहिए होती है। .. ... अच्छा नमस्कार माँ। "  दीक्षा ने मोबाइल बंद कर फ्रिज के पास रख दिया और स्टोव पर चाय के लिए पानी चढ़ा दिया।
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बस चल पढ़ी। टीनी दीदी उसी बस से आती जाती थी।   स्कूल की हेड गर्ल भी उसी बस में थी। सीनियर क्लास की छात्राएं बस में ही उसको घेर कर उससे घटना के बारे में पूछने लगी। कुछ ही देर में सभी लड़कियां अपनी अपनी जगह सहम कर बैठ गयी। लड़के सर झुका नज़रे नहीं मिला रहे थे। मनुज कुछ समझा, कुछ नहीं पर यह वह समझ गया की टीनी दीदी के साथ जो हुआ बहुत बुरा हुआ था।
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दीक्षा ने भुवनेश को चाय पकड़ाई तो भुवनेश ने उसको अपने पास बिठा कर बड़े प्यार से मुस्कुराते हुए उसके उभरे उदर को सहलाया तो दीक्षा को एक आनंद की सी अनुभूति हुई।  "यह क्या कर रहे हो। दरवाज़ा बंद नहीं है।", दीक्षा ने भुवनेश से मुक्त होने  का बहाना सा किया।
"कोई नहीं आएगा।  माँ सत्संग में गयी है, मनु शाम से पहले आने वाला नहीं है " भुवनेश ने उसे अपने बाहुपाश में बाँध लिया।
" अच्छा।  नाम सोचा है " दीक्षा ने फुसफुसाते हुए पुछा।
"हाँ। शुभ्रा। कैसा है ?" भुवनेश ने उसके चेहरे को हथेलियों में समा लिया।
"बहुत अच्छा है।  तुम कितने अच्छे हो " दीक्षा का चेहरा लाल हो गया था।
"पर अगर लड़का हुआ तो। शुभ्रांशु या अनुज।  मनुज का भाई अनुज।" भुवनेश दीक्षा को चिढ़ाते हुए बोला। 
 " नहीं।  सोचो मत। मुझको बेटी ही चाहिए इस बार और  मनु को बहन "
"नहीं चाहिए मुझे बहन। बहन नहीं चाहिए। नहीं चाहिए। नहीं चाहिए " मनुज अंदर दाखिल हो चुका था। बैग उसने सोफे की और उछाल दिया। भुवनेश और दीक्षा दोनों सकते में आ गए।
"क्या हुआ मनु ? तुम तो स्कूल में थे ? ऐसा क्यों कह रहे हो बच्चा ? कल ही तो हमने - तुमने बहन के लिए बार्बी खरीदी।
"नहीं चाहिए मुझे बहन। कहा ना।  बस '" मनुज चिल्लाते हुए बोला और माँ से लिपट गया।   भुवनेश से रहा नहीं गया।  उसने मनुज जो अपनी और किया और पुछा , " मगर क्यों , मनु ?  क्यों ?"
" क्यूंकि , उसका रेप हो जाएगा पापा !!! "
दीक्षा और भुवनेश को काटो  तो खून नहीं। 
सन्नाटे में दीवारें तक कांप रही थी। 
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सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल 
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Sunday 4 February 2018

पुस्तक सिंहावलोकन : अंगार और फुहार





पुस्तक सिंहावलोकन : अंगार और फुहार
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भेद भाव सब छोड़करकरो चरित निर्माण
देश सदा आगे बढ़े , अपना भी कल्याण।........" अंगार और फुहार "

११ जनवरी २०१८ के  विश्व पुस्तक मेले में श्री सुरेश पाल वर्मा 'जसाला ' जी के काव्यसंग्रह " अंगार और फुहार " का विमोचन हुआ। पुस्तक को प्राप्त करते ही इसके आवरण ने जता दिया कि आवरण के भीतर देशभक्ति  की भावनाओं को उकेरती रचनाओं से रूबरू होना पड़ेगा I  इस काव्यसंग्रह में कवि ने मानवीय संबंधों और सामाजिक व्यस्थाओं के ऊपर विभिन्न विधाओं में रचित अन्य रचनाएँ भी पाठक के सम्मुख प्रस्तुत कर काव्यसंग्रह ' अंगार और फुहार ' शीर्षक को  पूरी तरह से सार्थक  किया है।
कवि सुरेश पाल वर्मा जसाला जी की  रचनाओं का श्रवण, उनकी ओज भरी वाणी द्वारा तो कई सालों से करता आ रहा हूँ पर एक साहित्यिक  दस्तावेज के रूप में  देशभक्ति की रचनाएँ पढ़ कर, ओज और वीररस के समकालीन  मूर्धन्य कवियों में कवि सुरेश पल वर्मा 'जसाला ' जी का नाम भी अगर मैं शामिल करूं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यथा :-

सेना के वीरों की तुम दुर्गति क्यों करा रहे 
छप्पन इंची सीना वाले तुम मौन क्यों लगा रहे
रणभेरी बजे , करो आर पार गद्दारों से 
जयचंदी गर्दन काटो मौका क्यों गवां रहे। 
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आतंकी जब भी मरते हैं , घाटी सड़कों पर आती है 
रक्षा करते जो वीर वहां  उनका ही खून बहाती है
धारा परिवर्तन मांग रही  दुष्टों का अब संहार करो 
कश्मीर से कन्याकुमारी , जनशक्ति जयहिंद गाती है।
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हिंदी साहित्य में देशभक्ति से औत प्रोत रचनाओं का एक अलग ही स्थान हैी।  अब चाहे वह "चाह नहीं मैं सुरबाला के गेसू में गूंथा जाऊं / माखन लाल चतुर्वेदी या 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी' / सुभद्रा कुमारी चौहान या फिर वह ' ए मेरे वतन के लोगो' / कवि प्रदीप की कालजयी रचनाएँ हों या सुरेश पाल वर्मा जसाला की भारत की माटी  के प्रति  अपनी कृतज्ञता और देश  प्रेम को शब्दाकार रूप में अपनी पुस्तक में रची रचनाओं द्वारा सम्मान और स्वाभिमान को दर्शाना हो , देश प्रेम युक्त रचनाये शरीर में एक उत्तेजना , एक उन्माद , एक सिरहन , एक रोमांच भर देती हैं और इसी देश प्रेम की दशा को ओर  प्रेरित करती है ' अंगार और फुहार '।  हिंदी साहित्य वीर रस से अछूता नहीं है यह अलग बात है कि ऐसी रचनाओं  का पाठ/पठन /प्रसारण ना जाने क्यों केवल राष्ट्रिय दिवसों या शहीदी दिवसों तक ही सीमित रह जाता है। पर मैंने जसाला जी को तब तब हमारी  चेतना को झकझोरती देशभक्ति की रचनाओं का मंचन करते देखा है  जब जब  देश की अस्मत पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है।  

'अंगार और फुहार ' के रचियता  जसाला जी का काव्य संसार  केवल वीर रस तक ही सीमित नहीं है।  उनका स्वयं का यह कहना कि , " अंगार और फुहार  को सागर की असीम गहराईयों में पनप रही हलचल और नभ में उमड़ती घनघोर घटाओं वाले प्रलयंकर तूफानों का मेरे अंतर्भावों में समावेषन मिला " उनके बहु आयामी लेखन प्रतिभा वह दर्शाता है जो एक प्रबुद्ध साहित्यकार में होनी तय है।  उनकी लेखनी में उतना ही पैनापन, उतनी ही हलचल , उतनी ही अंतर्व्यथा , उतनी ही संवेदना , उतना ही सरोकार  उनके द्वारा रचित  मुक्तक, दुपदी  , दोहा छंद  , क्षणिकाएं , कुंडलियां , गीतिका इत्यादि   बहुरंगी और विविध रचनाओं में भी दृश्यव्य है जितना कि उनकी देशप्रेम की रचनाओं में।

कवि विचारक है। राजनैतिक और सामाजिक मूल्यों में विघटन को देखता है और उसका मन विचिलित होता है। फिर भी उसे इस निराशा में आशा की एक किरण सी महसूस होती है तो वह एक कुंडलीया  छंद के द्वारा कहता है।   यथा :-
बाबा तो बूढ़े हुए , जीर्ण शीर्ण से आज 
मन विधुत सी कौंधती बच्चे सब नाराज़
बच्चे सब नाराज़ स्वार्थ के मद में डूबे
जान उन्हें बेकार मन ही मन ऊबे
देख दृश्य अनमोल हुआ मन फाबा फाबा 
आया दौड़ा पौत्र पुकारे बाबा बाबा। 

कहने को तो यह एक सीधा तथ्य बयानी हो सकता है पर ध्यान से , बार बार पढ़ने पर पाठक को एक सत्य का ज्ञान हो जाता है कि आजकल की सामजिक व्यवस्था में वृद्ध और बुजर्गो को किस प्रकार से उनके ही अपने बच्चे एक बोझ समझने लगे हैं  और फिर अचानक एक सकून सा प्राप्त होता है 'पौत्र ' के रूप में जिसमे वह बुजुर्ग को प्रेम का दिया प्रकाश समान दिखाई देता है। 
इसी कड़ी में अगर उनका यह दोहा पढ़ा जाए तो आजकल के युवा पीड़ी पर एक जबरदस्त कटाक्ष किया गया है I यथा :-

तीरथ तीरथ घूमते  मात पिता को भूल 
पवन पदरज छोड़ कर फांक रहे हैं धूल। 

काव्यसंग्रह 'अंगार और फुहार ' की भाषा सहज, सरल और सर्वग्राही है। संग्रह में काव्य विधाओं के शीर्षकानुकूल रचनाओं द्वारा पाठकों को हर उस अवस्था से गुज़ारा गया है जिसका साबका पाठक को हर रोज़ पड़ता है। जैसे जैसे पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ पलटता है कवि की हर विधा में विचारों  और अनुभूतियों का व्यापक शब्द कैनवास को मानो मानवीय संवेदना के हर फ्रेम में जड़ दिया गया हो, उसे ऐसे उसे प्रतीत होता है। श्री  सुरेश पाल वर्मा 'जसाला जो कि  ' जसाला  वर्ण पिरामिड ' के और 'सिंहावलोकनि दोहा ' के जनक भी हैं , उन्होंने अपने  जीवन की  गहन अनुभूतियों  कोजिनमे ओज , कुंठा, वेदना, आशा -निराशा और उल्लास  की अभिव्यक्तियों काविभिन्न विधाओं  में काव्य सम्प्रेषण अंगार और फुहार के द्वारा  पाठकों के समक्ष  उस भाषा में प्रस्तुत किया है जिसमे इन सभी संवेदनाओं में निहित तनाव को को तो दर्शाया ही है  कंही कंही तो समाधान भी प्रस्तुत किया है। उनके काव्य की निरंतरता , गीतमय लय शब्द चयन और संयोजन पाठकों को सम्मोहित करेगी , ऐसा मेरा विश्वास है। 

काव्य संग्रह की अपार सफलता के लिए हार्दिक शुभकामना सहित। 

त्रिभवन कौल 
स्वतंत्र लेखक-कवि

05-01-2018
kaultribhawan@gmail.com