Tuesday 10 April 2018

चतुष्पदी (Quatrain 41-42)


हास्य परोसें बेहुदा, जब तब  कवि मंचीय   

काव्य साहित्य दांव पर, दशा क्यों सोचनीय 

टीवी कवि को देख कर, होता मन को रंज 

कवि गरिमा कैसे बढ़े, स्थिति बड़ी दयनीय
--------------------------------------------------

फूहड़ हास्य परोसें टी वी  व  मंचीय कवि

साहित्य गरिमा दांव पर, ग्रहण में  है रवि 

कृष्ण ने जैसे असफल,  किया था चीर हरण 

काव्य मनीषी माथा ठोके,  कैसे बचाये छवि 
--------------------------------------------------
सर्वाधिकार सुरक्षित /त्रिभवन कौल 


13 comments:

  1. via fb/ ट्रू मीडिया साहित्यिक मंच.
    ---------------------------
    Kviytri Pramila Pandey 3:39pm Apr 10
    वाहहहहह अतिसुंदर
    सामयिक,, सार्थक

    ReplyDelete
  2. via fb/TL
    ----------------
    Santosh Kumar Sharma
    April 10 at 2:31pm
    Behtareen
    --------------------
    Deepika Maheshwari
    April 10 at 6:00pm
    Lajavaab...

    ReplyDelete
  3. via fb/Purple Pen.
    ---------------------
    Suresh Pal Verma Jasala 5:46pm Apr 10
    सही कहा आपने आदरणीय

    ReplyDelete
  4. via fb/आगमन ...एक खूबसूरत शुरुआत
    -----------------------------------
    Neelam Sahu 9:33pm Apr 10
    प्रणाम sir
    और हम सोच रहे थे ये देख सुन कर कि हम चलन से बाहर हो गए ।
    आत्मबल प्रदान करने के लिये शुक्रिया।

    ReplyDelete
  5. your post.


    via fb/TL
    -------------
    Jagdish Sharma
    April 10 at 10:08pm
    सत्य कहा सर

    ReplyDelete
  6. via fb/Purple Pen
    --------------------
    Kamal Kant Sharma 5:46pm Apr 10
    जी वास्तविक हालात का वर्णन किया हैं आपने ।

    ReplyDelete
  7. via fb/TL
    ---------
    Umesh Srivastava
    April 11 at 9:46am
    वाह-वाह क्या बात कही है आपने

    ReplyDelete
  8. via fb/tl
    ----------
    Gangesh Gunjan
    April 10 at 8:42pm
    बढ़िया

    ReplyDelete
  9. via fb/Purple Pen
    --------------------
    वसुधा कनुप्रिया 5:46pm Apr 10
    अभी तक अपना पाला ऐसे कवियों/मंचों से नहीं पड़ा लेकिन टीवी पर अवश्य देखा है ऐसा फूहड़ हास्य
    ----
    वसुधा कनुप्रिया 1:31pm Apr 13
    Tribhawan Kaul जी, नाम लेना उचित नहीं होगा पर टीवी पर बहुत से चुटकुलेबाज़ छाये हुए हैं । हास्य कविता के नाम पर अभद्रता परोसते हैं । सादर
    ------------
    Tribhawan Kaul 11:50am Apr 13
    खुद लिखने की औकात नहीं और दूसरों के लेखन पर पैरोडी कहते हैं। :)

    ReplyDelete
  10. via fb/Purple Pen
    --------------------
    DrAtiraj Singh 11:49am Apr 13
    सच में आदरणीय .....शर्म आती है कवि कहते हुए....नमन आपको !

    ReplyDelete
  11. via fb/Purple Pen.
    ------------------
    Karunanidhi Tiwari 11:50am Apr 13
    बड़ी ही अच्छी चतुष्पदी

    ReplyDelete
  12. via fb/Purple Pen.
    ---------------------
    Shailesh Gupta 1:31pm Apr 13
    सार्थक....सृजन.... !....

    ReplyDelete
  13. via fb/Purple Pen.
    -------------------
    Rajesh Srivastava 1:31pm Apr 13
    सत्य कथन है आपका आदरणीय, स्थिति भी कुछ एेसी है कि सामान्य श्रोता भी यही सब पसन्द कर रहा है, उसे कविता के नाम सिर्फ मनोरंजन चाहिए, तालियाँ और वाहह वाहह भी उन्ही को मिलती है नौटंकी के पात्र की तरह भाव भंगिमा के साथ काव्य पाठ करे,

    ReplyDelete